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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दृढ़ निश्चय करें तथा खादी प्रचारके लिए पैसा इकट्ठा करें। जो स्वयं कपासकी खेती करता है वह अपने उपयोगके लायक कपास अलग रख ले।

लेकिन जिन्हें चरखका नाम अच्छा नहीं लगता उनका क्या हो? उनके लिए मैं क्या उपाय बतला सकता हूँ? जिन्हें स्वराज्यका नाम अच्छा नहीं लगता उनसे शताब्दी मनानेकी बात किस तरह कही जाये? उन्हें स्वयं कोई उपाय सोच लेना चाहिए। मेरा सुझाव तो सार्वजनिक है और मैं इतना ही कर सकता हूँ। यदि कोई व्यक्ति अन्य गुणोंकी शोध करके उनका अनुकरण करना चाहे तो एक अलहदा बात है। इस तरह किसी दूसरे तरीकेसे शताब्दी मनानेका उसे हक है। अथवा यदि स्वराज्यवादी शहरोंमें कुछ विशेष कार्यक्रम रखना चाहें तो अवश्य रखें। मैं तो केवल वही कह सकता हूँ जिसे ग्रामीण और नागरिक, वृद्ध और बालक, स्त्री और पुरुष, हिन्दू और मुसलमान सब कोई कर सकते हैं।

यदि हम मेरे सुझावके अनुसार दादाभाईकी जन्म-शताब्दी मनाना चाहते हैं तो हमें आजसे ही तैयारियां शुरू कर देनी चाहिए। हम आजसे ही उसके लिए चरखा चलायें, आजसे ही हम उसके निमित्त खादी तैयार करें, और स्थान-स्थानपर ऐसी सभाएँ करें जो हमें और देशको शोभा दें।

अखिल भारतीय देशबन्धु

स्मारक इस स्मारकके कोष-सम्बन्धी परिपत्रपर अभीतक हस्ताक्षर लिये जा रहे हैं। कवि गुरुके हस्ताक्षर प्राप्त होनेसे मुझे स्वाभाविक रूपसे आनन्द हुआ है। उम्मीद है कि पाठकोंको भी होगा। मैंने उन्हें विशेष रूपसे यह सन्देश भेजा था कि परिपत्रमें जिस श्रद्धाकी चर्चा की गई है, चरखेके बारेमें उन्हें वैसी ही श्रद्धा हो तो वे हस्ताक्षर करें; अन्यथा नहीं। मुझे जब यह लगा कि अखिल भारतीय स्मारक चरखा और खादीके सम्बन्धमें ही होना चाहिए तब मैंने उस विचारको सर्वप्रथम कवि गुरुके आगे ही रखा था। उस बातको, आज जबकि मैं यह लेख लिख रहा हूँ, आठ हफ्ते हो गये हैं। उन्होंने तभी सम्बन्धित परिपत्रपर हस्ताक्षर करनेकी बात स्वीकार कर ली थी। इस परिपत्र में जिस व्यक्तिको चरखे और खादीपर श्रद्धा न हो अथवा जो स्मारकके सम्बन्धमें इसे ठीक न मानता हो, उससे हस्ताक्षर लेनेका आग्रह रखा ही नहीं गया है। परिपत्रपर सिर्फ श्रद्धालुओंके हस्ताक्षर लेनेकी बात थी; इतना ही नहीं बल्कि यह भी निश्चय था कि यदि देशबन्धुके खास अनुयायी स्मारकको इस प्रकार नापसन्द करेंगे तो स्मारकको चरखा और खादी प्रचारका स्वरूप प्रदान नहीं किया जायेगा। हम सामान्य रूपसे परिपत्रपर जिनके हस्ताक्षर करनेकी अपेक्षा रखते हैं यदि वे सब भी निःसंकोच भावसे उसपर हस्ताक्षर न करें तो यह आग्रह भी हमने नहीं रखा है। इसी तरहसे स्मारककी स्थापना की जानी चाहिए। मैं जानता हूँ कि चरखा और खादीकी उपयोगिताके बारेमें मतभेद है, उसे देशबन्धु-जैसे महान् नेताके स्मारकमें एकान्तिक स्थान प्रदान करनेकी बातको एकाएक बहुत सारे लोग स्वीकार नहीं कर सकते। लेकिन मुझे तो देशबन्धुके प्रति एक साथी और मित्रके रूपमें अपना धर्म निभाना था और अखिल बंगाल स्मारकके सम्बन्धमें यदि मुझे स्वतन्त्र रूपसे