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१९६. भाषण : सीतापुरके अस्पृश्यता विरोधी सम्मेलनमें[१]

१८ अक्तूबर, १९२५

गांधीजीने कहा कि मैं स्वर्गीय गोखलेके कथनसे पूरी तरह सहमत हूँ कि भारतीय अपने कुछ देशवासियोंको अस्पृश्य मानकर स्वयं सारी दुनियामें अस्पृश्य हो गये हैं। मैं स्वामी श्रद्धानन्दके इस सुझावको भी ठीक मानता हूँ कि अस्पृश्यताको दूर करनेका व्यावहारिक मार्ग यही है कि हरएक उच्च वर्ण हिन्दू घर परिवारमें एक तथाकथित अस्पृश्य व्यक्तिको रखे। मेरा निश्चित विश्वास है कि हिन्दू धर्ममें अस्पृश्यताके लिए कोई स्थान नहीं है। किसी भी मानवके प्रति अस्पृश्यताका व्यवहार करना पाप है। अतः तथाकथित उच्च जातिके लोगोंको अस्पृश्योंके बजाय स्वयं अपनी ही शुद्धि करनी चाहिए। उन्होंने अछूतोंसे भी अनुरोध किया कि वे अपनेको शारीरिक रूपसे और नैतिक दृष्टिसे भी स्वच्छ रखें एवं चरखेको अपनायें और खद्दर खरीदपहनकर उसे बढ़ावा दें।

[अंग्रेजीसे]
लीडर, २०-१०-१९२५
 

१९७. सन्देश : कानपुरके कांग्रेस सदस्योंको

१९ अक्तूबर, १९२५

मेरी उमेद है की महासभाको सफल करनेके लीये सब भाई बहन सर्व प्रकार से सहायता देंगे।

मोहनदास गांधी

मूल प्रति (सी॰ डबल्यू ९२७०) से।
सौजन्य : परशुराम मेहरोत्रा
 
  1. यह सम्मेलन महेवाके राजा साहबकी अध्यक्षतामें संध्याके समय हुआ था।