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१९९. भाषण : बम्बईमें[१]

२० अक्तूबर, १९२५

महात्माजीने कहा,. . .बम्बई तथा कच्छमें रहनेवाले कच्छियोंने मुझे कच्छ आनका जो निमन्त्रण दिया है, उसके लिए मैं उनको धन्यवाद देता हूँ। मैं नहीं जानता कि मैं कच्छ क्यों जा रहा हूँ। शायद इसका एकमात्र कारण कच्छी लोगोंका प्रेम ही है, वही मुझे वहाँ खींचे लिये जा रहा है। आप सभी जानते हैं कि कौन-सी चोजें मेरे हृदयको भाती हैं, और मैं उनके सम्बन्धमें कोई नई बात नहीं कहना चाहता। में दिन-दिन मृत्युके समीप पहुँच रहा हूँ, लेकिन फिर भी मेरे आदर्शों और मेरी आकांक्षाओंका कोई अन्त नहीं है। सच तो यह है कि मैं अपने अन्तके जितना हो समीप पहुँचता जा रहा हूँ, मेरी आकांक्षाएँ उतनी ही ऊँची और विस्तृत होती जा रही हैं। आपसे मेरा इतना ही निवेदन है कि आप मुझे अपना आशीर्वाद देते रहिए और ईश्वरसे प्रार्थना कीजिए कि वह मुझे अपने आदर्शोंपर अटल रहने और काममें लगे रहनेकी शक्ति और साहस दे। यहाँ मैं आपको इतना और याद दिला देना चाहता हूँ कि मैं जो कुछ भी करती हूँ, सत्य और धर्मके प्रति प्रेमसे ही प्रेरित होकर करता हूँ। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं कच्छमें ऐसा कोई काम नहीं करूँगा जिससे आपको लगे कि मुझे निमन्त्रित करके आपने ठीक नहीं किया।

महात्माजीने आगे कहा कि मुझे आरामकी बहुत जरूरत है और मैं उम्मीद कर रहा हूँ कि कच्छ में मुझे आराम मिल सकेगा। मैं चिन्ताओंके भारसे दबा जा रहा हूँ। मुझे कच्छी लोगोंकी शिकायतों और उनकी अपरिहार्य आवश्यकताओंसे अवगत कराते हुए कई पत्र लिखे गये हैं। मैं तो आपसे इसके अलावा और कुछ नहीं कहना चाहता कि अगर मैं उनका कोई उपाय नहीं कर सका तो आप ऐसा मानिए कि वह मेरी अरुचिका लक्षण न होकर मेरी कमजोरीका परिणाम है।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २२-१०-१९२५
 
  1. गांधीजीने यह भाषण कच्छ जाते समय समुद्र तटपर उन्हें विदाई देनेके लिए आते हुए लोगोंकि सम्मुख दिया था।