२०१. टिप्पणियाँ
भूल-सुधार
८ अक्तूबरके अंकमें बिहारकी टिप्पणियोंमें[१] मैंने लिखा था, राँचीमें मुझे गलकुण्डा ले जाया गया। यह मेरी अज्ञानभरी भूल थी। अब बिहारी मित्र मेरे भौगोलिक अज्ञानपर हँस रहे हैं और उन्होंने मुझे बताया है कि गलकुण्डा राँचीके पास नहीं, बल्कि पुरुलियाके पास है। मैं इस भारी भूलके लिए पुरुलियाके लोगोंसे क्षमा मांगता हूँ। फिर भी जब कई गाँवोंमें, और एक ही गाँव या शहरके कई स्थानोंमें एक ही दिन जाना होता है और कार्यक्रमोंको एकके बाद एक करके जल्दी-जल्दी पूरा करना होता है तब इतने स्थानोंको ठीक-ठीक याद रखना कठिन होता है। इसलिए मैं बाध्य होकर कई स्थानों और सम्बन्धित व्यक्तियोंके नामोंका उल्लेख करना छोड़ देता हूँ और केवल घटनाओंका वर्णन करता हूँ, इसलिए जब लोग यह देखें कि उनकी रायमें मुझे जिन व्यक्तियों या स्थानोंके नामोंका उल्लेख करना चाहिए था और मैंने किया नहीं है तब वे समझ लें कि जानकारीके अभावमें ही मैंने ऐसा किया है; और इसका कारण विशुद्ध रूपसे मेरी दुर्बल स्मृति है।
कताई-निबन्ध प्रतियोगिता
पाठकोंको याद होगा कि इस सालके शुरूमें श्रीयुत रेवाशंकर जगजीवनने हाथकताई, उसके इतिहास और उसके उपयोगपर सर्वोत्तम निबन्ध लिखनेवाले व्यक्तिको एक हजार रुपयका पुरस्कार देनेकी घोषणा की थी। उसकी शर्त ये थीं :[२]
बादमें श्रीयुत अम्बालाल साराभाईको भी निर्णायक बननेके लिए निमन्त्रित किया गया और उन्होंने यह निमन्त्रण कृपापूर्वक स्वीकार कर लिया। इस निबन्धकी पहुँचकी तिथि १५ मार्च निश्चित की गई थी। यह तिथि बादमें बढ़ाकर ३० अप्रैल कर दी गई और इस निर्धारित समयके भीतर ६० से अधिक निबन्ध प्राप्त हए। प्रत्येक निर्णायकने निबन्धोंकी स्वतन्त्र जाँच की। हममें से दो ने एक व्यक्तिको प्रथम पुरस्कार दिया, तीसरेने एक अन्य व्यक्तिको प्रथम पुरस्कार दिया और चौथेने एक तीसरे व्यक्तिको। आपसमें सलाह करनेके बाद हमने यह तय किया कि इस पुरस्कारके दो भाग कर दिये जायें और इसे श्रीयुत एस॰ वी॰ पुणताम्बेकर और श्री एस॰ एन॰ वरदाचारीमें बाँट दिया जाये। निर्णायकोंने प्रस्ताव किया है कि इन दोनों निबन्धोंको मिलाकर एक बना दिया जाये और यह काम दोनों लेखक मिलकर करें या यदि इसे दोनों न कर सकें तो जिसे भी अवकाश हो और जो ऐसा करने के लिए तैयार हो वह उसे पूरा करके प्रकाशनके लिए दे दे। खेद है कि इसके कारण कुछ