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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आधा घंटा प्रतिदिनकी मेहनत शायद बेकार सिद्ध होगी; किन्तु संगठित संस्थाके लिए देशके किसी भी कोनेमें बैठकर मेहनत करने में वह शक्ति है जो राष्ट्रीय जीवनमें क्रान्ति ला सकती है। यदि छोटे बच्चे रोजाना नियमित रूपसे कुछ काम करके अपने देशको याद करते रहें तो यह भी कुछ कम नहीं है। इससे उन्हें अनुशासनका अमूल्य पाठ पढ़नेको मिलेगा। जब आप शरीर-श्रमके इस सीधे-सादे कामको बच्चोंके सामने स्वयं करके दिखायेंगे तब आपने स्वयं जैसा कभी नहीं सोचा होगा, चरखेका वैसा महत्त्व अनायास ही आपके सामने प्रकट हो जायेगा। यह पूछकर कि जब सारा भारत आलस्यमें डूबा हुआ है, आपके आधा घंटा कातनेसे क्या लाभ होगा, कृपया अपने सामने कठिनाईका पहाड़ खड़ा न करें। आपके लिए यही काफी है कि आप स्वयं अपना कर्त्तव्य अच्छी तरहसे पूरा करें; बाकी तो सब-कुछ अपने-आप हो जायेगा। सारे संसारपर हमारा कोई वश नहीं है। लेकिन अपने-आपपर तो हमारा वश है ही। और यही हमारे हाथकी बात है। लेकिन साथ ही यही तो सब कुछ है। अंग्रेजीकी इस कहावतमें बहुत-कुछ सत्य है कि 'कौड़ी बचानेसे रुपया तो बच ही जायेगा।'

आखिर लोहानी मिल गई

जब मैं लोहानीका पता लगनेकी सब आशाएँ छोड़ चुका था तब मुझे एक अप्रत्याशित सूत्रसे सहायता मिली, और अब मेरे पास अखबारोंकी कतरनके रूपमें पूरा विवरण मौजूद है। मैं देखता हूँ कि मैंने 'यंग इंडिया' के पृष्ठोंमें लोहानीका प्रथम बार जो उल्लेख किया था[१], ये कतरने उसीपर आधारित है। ये अखबारी रिपोर्ट लिखनेवालोंका ख्याल रहा होगा कि मैं उनके विवरणोंको देख लूँगा। जाहिर है कि उन्हें यह बात मालम नहीं कि समाचारपत्रोंके दयाल सम्पादक और मालिक लोग 'यंग इंडिया' या 'नवजीवन' के बदलेमें जो असंख्य अखबार मुझे भेजते है मैं उन्हें पढ़नेका समय नहीं निकाल पाता। मैंने बहुत बार प्रार्थना की है और मैं उसे यहाँ फिर दोहराता हूँ कि जो लोग मुझे कोई सूचना देना चाहें या मेरी भूल बताना चाहें या अखबारोंमें लेख लिखकर मुझे सलाह देना चाहें, वे कृपा करके मुझे उसकी सम्बन्धित कतरनें भेजें। एक कतरनमें एक लेखकने इस बातपर आश्चर्य प्रकट किया है कि मैं यह भी नहीं जानता कि लोहानी कहाँ है। उसके इस खेदमें मैं भी शामिल हैं। लेकिन उसे आश्चर्य क्यों होना चाहिए? मैं तो काफी पहले स्वीकार कर चुका हूँ कि मैं अपने देशका भूगोल नहीं जानता? वर्नाक्यूलर स्कूल में मुझे भारतके भूगोलकी बिलकुल मोटी रूपरेखा पढ़ाई गई थी, और अंग्रेजी स्कूलमें पहले दर्जेमें मुझे इंग्लैंडकी सब तहसीलोंके नाम और अन्य बहुतसे विदेशी नाम जबानी याद कर लेनेको कहा गया था; नहीं तो मेरी बेंतोंसे पिटाई होगी। इन नामोंका उच्चारण करने में और इन्हें कण्ठस्थ करने में मुझे बहुत कष्ट हुआ। लोहानीके बारेमें तो मुझे किसीने नहीं बताया, और मुझे निश्चय है कि मेरा शिक्षक भी यह नहीं जानता था। अब मैं देखता हूँ लोहानी भिवानीके पास है; किन्तु भिवानी कहाँ है, यह भी पंजाब जानेसे

 
  1. देखिए "टिप्पणियाँ", २७–८–२५ का उपशीर्षक 'लोहानी कहाँ है?'।