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शाश्वत समस्या

 

सात सामाजिक पाप

यही महिला मित्र यह चाहती है कि यदि 'यंग इंडिया' के पाठकोंको नीचे सात सामाजिक पापोंकी खबर न हो तो वे उन्हें बता दिये जायें :

सिद्धान्तहीनराजनीति
श्रमहीनसम्पत्ति
विवेकहीनसुख
चरित्रहीनज्ञान
नीतिहीनव्यापार
दयाहीनविज्ञान
त्यागहीनपूजा

स्वभावतः यह महिला यह नहीं चाहती कि पाठक इन बातोंको मात्र समझ लें बल्कि वे चाहती हैं कि वे इन्हें हृदयंगम कर लें जिससे वे इन पापोंसे बच सकें।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया २२–१०–१९२५
 

२०२. शाश्वत समस्या

हिन्दू-मुस्लिम प्रश्नसे मैं चाहे कितना भी क्यों न बचना चाहूँ, वह मुझे नहीं छोड़ता। मुसलमान मित्र इसके निबटारेमें मुझसे बीच में पड़ने का आग्रह करते हैं और हिन्दू मित्र इसपर मुझसे बहस करना चाहते हैं। कुछ तो यह भी कहते हैं कि जब ऊखलमें सिर दिया है तो मूसलोंसे क्या डरना। जिन दिनों में कलकत्तमें था, मुझे एक बिहारी मित्रका क्षोभ और क्रोधमें लिखा गया एक पत्र मिला था। उसमें उन्होंने हिन्दू बच्चों, खास कर लड़कियोंके कथित अपहरणों की कहानी बयान की थी। अपने पत्रमें मैंने उनसे साफ कह दिया था कि मुझे उनके आरोपोंपर विश्वास नहीं है और यदि उनके पास सबूत हो तो वे भेजें; मैं बड़ी खुशीसे उनकी जाँच करूँगा और यदि मुझे यकीन हो गया तो चाहे मैं और कुछ न कर सकूँ, तो भी मैं उसकी निन्दा अवश्य ही करूँगा। तबसे उन्होंने समाचारपत्रोंमें से अपहरणके मामलोंके रोमांचक वर्णनकी कतरनें मेरे पास भेजी है। मैंने उन्हें लिख दिया है कि समाचारपत्रोंके वर्णनोंको जुर्मके सबूतकी तरह स्वीकार नहीं किया जा सकता। ऐसे बहुतसे मामलोंमें समाचारपत्रोंके बयान तो ज्यादातर भड़कानेवाले, गुमराह करनेवाले और सरासर झूठे होते हैं। हिन्दू और मुसलमानोंके कुछ ऐसे समाचारपत्र हैं जो एक-दूसरेको बुरा कहनेका ही काम करते हैं। और यदि उनके आधारपर दोनों ही पत्रोंकी बातें सही मान ली जाये तो हिन्दु मसलमान दोनों ही वर्ग घृणित है। किन्तु मैंने इस बातकी तसल्ली ठीकसे कर ली है कि अपहरणके जो मामले छापे गये हैं, उनमें से बहुतसे