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बिहारीके अनुभव—३

श्रोताओंसे कहा कि यदि स्थानीय निकायके पास काफी रुपया नहीं है तो उसके सदस्यों को कांग्रेसके स्वयंसेवकोंकी मददसे सड़कोंकी मरम्मत करनी चाहिए। यह कोई बड़ी बहादुरीका काम करनेको नहीं कह रहा हूँ। यदि हमने नगरपालिका और स्थानीय निकायोंपर कब्जा कर लिया है, तो अधिकारको रू से हमारे जिम्मे जो-जो रचनात्मक काम आयें उन्हें अच्छी तरह पूरा करने में हमें भली-भाँति अपनी सामर्थ्य सिद्ध करनी चाहिए।

गोरक्षा

गिरीडीह की गोशाला समितिके अभिनन्दन-पत्र में लिखा था कि उसको दान इत्यादि-से सालाना ९,००० रुपयेकी आमदनी होती है। और दूध इत्यादिसे केवल २०० रुपयेकी ही। इससे पाठकोंको याद आ जायेगा कि चाईबासाका-सा हाल यहाँ भी है। बातें तो बहुत होती है लेकिन काम कुछ भी नहीं होता। आदर्श गोशाला तो वह होगी जो अपने शहरको अपने ही पाले हुए ढोरोंका अच्छा और सस्ता दूध काफी परिमाणमें पहुँचा सके और कत्ल किये हुए ढोरोंके नहीं, बल्कि मरे हुए ढोरोंके चमड़ेसे बने सस्ते और टिकाऊ जूते तैयार करके दे। ऐसी गोशाला शहरके मध्यमें या उसके आसपास कहीं नजदीकमें एक या दो एकड़ जमीनपर नहीं हो सकती है। वह तो शहरसे कुछ दूरीपर ऐसी ५०-१०० एकड़ जमीनपर ही हो सकेगी, जहाँसे शहरतक आसानीसे आना-जाना हो सकता हो। डेरी और चर्मालय भी वहाँ होगा और वे पूर्ण व्यवसायकी दृष्टिसे किन्तु राष्ट्रीय आधारपर चलाये जायेंगे। इस गोशालामें मुनाफा कमानेकी बात भी नहीं होगी और न वह नुकसानमें ही चलेगी। कुछ समयके बाद जब सारे हिन्दुस्तानमें जगह-जगह ऐसी गोशालाएँ बन जायेंगी, तब वह समय हिन्दूधर्मकी सम्पूर्ण सफलताका समय होगा, और वह गोरक्षा अर्थात् चौपायोंकी रक्षाके सम्बन्धमें हिन्दुओंकी सच्ची भावनाका प्रमाण होगा। इससे हजारों आदमियोंको, शिक्षित मनुष्योंको भी अच्छी रोजी मिलेगी; क्योंकि डेरी और चमड़ेके काममें बड़े ही ऊँचे प्रकारकी वैज्ञानिक जानकारीको आवश्यकता है। डेरी सम्बन्धी उत्तमोत्तम प्रयोगोंके लिए हिन्दुस्तानको ही आदर्श राज्य होना चाहिए, डेन्मार्कको नहीं। हिन्दुस्तानको सालाना ९ करोड़ रुपयोंका मरे हुए ढोरोंका चमड़ा विदेशोंको भेजकर कत्ल किये गये ढोरोंका चमड़ा खुद इस्तेमाल करना पड़ता है, इसकी नौबत नहीं आनी चाहिए। यदि यह भारतके लिए लज्जाकी बात है तो हिन्दुओंके लिए तो यह और भी अधिक लज्जाकी बात है। मैं चाहता हूँ कि गिरीडीहके अभिनन्दन-पत्रका उत्तर देते हुए मैने जो कुछ कहा है, उसपर सभी गोशाला समितियाँ ध्यान दें और वे अपनी गोशालाओंको आदर्श डेरी और चर्मालयोंमें बदल दें और उन्हें सभी प्रकारकी बुड्ढी और निकम्मी गौओंका आश्रयस्थान बना दें।

कौन काते?

गिरीडीहके अभिनन्दन-पत्रमें जो तीसरी दिलचस्प बात कही गई थी वह थी मजदूरों द्वारा कताई न करना। गिरीडीहमें अभ्रककी कई खानें भी हैं। उन खानोंमें

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