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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बहुतसे मजदूर काम करते है। इन मजदूरोंको कातनेसे जितनी मजदूरी मिल सकती है उससे कहीं अधिक मजदूरी खानोंमें मिलती है इसलिए वे बिलकुल ही नहीं कातते है। सच बात तो यह है कि उस अभिनन्दन-पत्रमें इसके लिए कोई क्षमा माँगनेकी आवश्यकता न थी। 'यंग इंडिया' के पाठक जानते हैं कि मैंने यह कभी नहीं कहा कि वे लोग भी, जो किसी ऐसे व्यवसायमें लगे हुए हैं, जिससे कि उन्हें अच्छी आमदनी होती है, अपने व्यवसायको छोड़कर कातनेको अपना लें। मैंने तो बार-बार यही कहा है कि कातनेकी आशा उनसे ही रखी जा सकती है और उन्हींसे कातने के लिए कहा जाना चाहिए जो किसी आमदनी देनेवाले व्यवसायमें नहीं लगे हए है और वे भी उस समय कातें जो उनका अवकाशका समय हो। कताईका सारा सिद्धान्त ही इस बातको मानकर तैयार किया गया है कि इस देशमें लाखों स्त्री-पुरुष ऐसे हैं जिनके लिए सालमें कमसे-कम चार महीने कुछ भी काम नहीं होता है, और वे आलसी बने बैठे रहते हैं। इसलिए दो ही वर्गके लोगोंसे कातनेकी आशा रखी जा सकती है। एक तो वे जो मजदूरी लेकर कातते हैं और जिनका मैं ऊपर जिक्र कर चुका हूँ। तथा दूसरे भारतके वे विचारशील लोग हैं जिन्हें त्याग-भावसे उदाहरण पेश करने के लिए और खद्दरको सस्ता करनेके लिए कातना चाहिए। लेकिन यद्यपि मैं यह समझ सकता हूँ कि ये मजदूर लोग कातते क्यों नहीं हैं, फिर भी मैं यह नहीं समझ सकता कि वे लोग खादी क्यों नहीं पहनते। उस बड़ी सभामें एक भी शख्स ऐसा नहीं था जो खादी न पहननेके लिए कोई उचित कारण बता सकता हो। गिरीडीह अपना सूत आप तैयार कर सकता है और उससे बिना किसी कठिनाईके अपने लिए खादी भी तैयार कर सकता है, और नहीं तो बिहारके दूसरे भागोंमें से बना-बनाया और अपेक्षतः सस्ता खद्दर लेकर अपनी मांग पूरी कर सकता है। लेकिन मैं देख रहा हूँ कि उन अभिनन्दन-पत्रोंमें खादी और चरखेके सम्बन्धमें यद्यपि उन्होंने अपनी त्रुटियोंको स्वीकार किया था, फिर भी मेरा ख्याल है कि उनकी यह स्वीकृति निकट भविष्यमें कोई सुधार करनेकी इच्छासे नहीं की गई थी। वह तो आजकी-सी हालत कायम रखनेकी लाचारी-भर व्यक्त करनेकी दृष्टिसे की गई थी। अपनी त्रुटियोंको स्वीकार करना तभी उपयोगी हो सकता है जबकि उसको स्वीकार कर लेने के साथ ही मनमें उसे दूर करनेका निश्चय भी हो। यदि ऐसी स्वीकृतिका प्रयोजन सुधारके बजाय उस दोषको कायम रखना हो तो उससे कुछ भी लाभ न होगा। इतना ही नहीं, वह हानिकर भी है। आशा है कि मुझे दिये गये अभिनन्दन-पत्रोंमें उनका अपनी त्रुटियोंको स्वीकार करना एक निश्चित सुधारको दिशामें पहला कदम साबित होगा।

राष्ट्रीय पाठशालाएँ

गिरीडीहसे हम लोग मधुपुर गये। वहाँ मुझसे एक छोटेसे सुन्दर नय टाउन हॉलका उद्घाटन करनेको कहा गया था। मैंने उसका उद्घाटन करते हुए और नगरपालिकाको उसका अपना मकान तैयार हो जानेपर मुबारकबादी देते हुए यह आशा व्यक्त की कि वह नगरपालिका मधुपुरको उसकी आबोहवा और उसके आसपासके कुदरती दृश्योंके अनुरूप ही एक बहुत सुन्दर जगह बना देगी। बम्बई और कलकत्ता