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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गये। यह सफर करीब दो घंटेका था। हम लोग तड़के ही मनियारी पहुँचे। यहाँके लोगोंने देशबन्धु स्मारक कोषके लिए एक थैली भेंट की। वहाँसे हम लोग रेल गाड़ीसे कटिहार जंकशन पहुँचे। वहाँ भी सार्वजनिक सभाएँ की गई और एक थैली मिली। दूसरे दिन हम लोग किशनगंज पहुँचे जहाँ हस्बमामूल सभाएँ हुई और एक थैली भेंट की गई। किशनगंजमें मारवाड़ियोंकी खासी आबादी है। उन्होंने काफी चन्दा इकट्ठा किया था। वहाँ एक शिष्टमण्डलने आकर मुझसे यह शिकायत की कि यद्यपि वे खादी पहनना चाहते हैं और तैयार भी है लेकिन किशनगंजमें खादी मिलती ही नहीं है। उन्होंने कहा कि कपड़े का सारा ही व्यापार मारवाड़ी लोगोंके हाथोंमें है और वे सिर्फ विदेशी कपड़ा ही बेचते हैं। शिष्टमण्डलने बताया कि मारवाड़ी व्यापारी कहते है कि विदेशी कपड़ा बेचने में उन्हें बहुत फायदा होता है। मैंने शिष्टमण्डलसे कहा कि यद्यपि मैं मारवाड़ी मित्रोंसे इस सम्बन्धमें सहर्ष कहूँगा, लेकिन आपका बताया हुआ कारण माना नहीं जा सकता। क्योंकि यदि किशनगंजमें खादीकी बहुत माँग है तो आप लोग वहाँपर एक सहकारी भण्डार खोल सकते हैं। उन मारवाड़ी व्यापारियोंपर, जो किशनगंजमें व्यापारके लिए आये है, दोष लगानेसे कुछ लाभ न होगा। आप-जैसे लोगोंका ही, जिन्हें खादीपर श्रद्धा है, यह फर्ज है कि खादीका रिवाज डालें, उसका संग्रह करने के लिए कुछ तकलीफ उठायें और फिर मारवाड़ियोंको भी वही माल रखने के लिए, कहें। लेकिन मैंने देखा कि वे यह करने के लिए तैयार न थे। मैंने उनसे यह भी कहा कि यदि वे यह गारंटी दें कि कमसे-कम इतनी खादी जरूर बिकेगी तो में श्री राजेन्द्रबाबको किशनगंजमें एक खादी भण्डार खोलने के लिए भी कहँगा। लेकिन यह जोखिम उठानेके लिए भी वे तैयार न थे। मैंने फिर बड़े-बड़े मारवाड़ी व्यापारियोंसे बातचीत की। उन्होंने कहा कि कुछ मारवाड़ियोंने कुछ अरसे के लिए कुछ खादी भी अपने यहाँ रखी थी, लेकिन उसकी कोई ठीक खपत नहीं हुई। उन्होंने इस बातको स्वीकार किया कि मारवाड़ी व्यापारियोंने खादीको लोकप्रिय बनाने या बेचनेका कोई प्रयत्न नहीं किया।

गोलमाल

हम लोग किशनगंजसे अरेरिया गये और अरेरियासे फारबिसगंज पहुँचे। यह बिहारकी उत्तर-पूर्वकी सीमा है और यहींसे नेपालकी हद शुरू होती है। मुझे बताया गया कि जब आकाश स्वच्छ हो तो यहाँसे हिमालयकी बरफसे ढंकी हुई सुन्दर कतारें भी दिखाई देती हैं। फारबिसगंज पहुँचने से पहले मुझे यह इच्छा हुई थी कि मैं राजेन्द्रबाबू और उनके साथ काम करनेवाले कार्यकर्त्ताओं को लोगोंपर अच्छा अधिकार प्राप्त करने के लिए मुबारिकबादी दूँ, क्योंकि पहले की तरह इस बार लोगोंकी बड़ी भीड़ होनेपर भी वह व्यवस्थित और शान्त थी और मेरे पैर छूने के लिए लोगोंने मुझे घेरा भी नहीं और इस प्रकार उन्होंने संयमका परिचय दिया। लेकिन फारबिसगंजमें मेरा यह भ्रम दूर हो गया। वहाँ कोई व्यवस्था नहीं रह सकी। भीड़ बहुत ही अधिक थी। बड़ी सख्त धूपमें सभा रखी गई थी। लोगोंके सिरपर कोई छाया न थी और वे सुबहसे राह देखते हुए बैठे थे। शोरगुल बहुत हो रहा था। मेरे