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३९० सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वजहसे मैं उसके प्रति चार वर्ष पूर्व आकर्षित हुआ था। पूर्णिया जिलेसे कोई सत्रह हजार रुपये मिले। उनमें से कुछ तो बिहार [राष्ट्रीय] विद्यापीठके लिए दिये गये है। बाकीके १५,००० रुपये देशबन्ध स्मारक कोषके लिए है। बिहार-यात्रामें इन रुपयोंको मिलाकर कुल ५०,००० रुपये स्मारक कोषके लिए मिले हैं।

बिहारके नेक और सीधे-सादे लोगोंको छोड़कर जाते हुए मुझे रंज होता है। मैं आशा करता हूँ कि यदि सब ठीक-ठाक रहा तो बिहारका बाकी दौरा मैं अगले वर्षके आरम्भमें ही पूरा करूँगा। मुझे आशा है कि बिहारी लोग इस बीच चरखा और खादीमें बहुत-कुछ प्रगति कर दिखायेंगे। उसके खादी भण्डारोंमें जो सुन्दर खादी पड़ी हुई है, वह सब बिक जानी चाहिए। अखिल भारतीय चरखा संघके बहुतसे सदस्य बन जाने चाहिए और वे केन्द्र, जहाँ कि गरीब लोग स्वयंसेवकोंके आने की राह देख रहे हैं, कताईके लिए अच्छी तरह व्यवस्थित हो जाने चाहिए। शराबखोरीकी बुराईपर भी रोकथाम की जानी चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २२–१०–१९२५
 

२०४. दुविधा

एक मित्र बड़ी दुविधामें पड़े हैं। वे एक भारतीय संस्थानमें नौकरी कर रहे हैं। वहाँ उन्हें ८ बजे सुबहसे लेकर ९ बजे राततक काम करना पड़ता है। मेरा खयाल है कि बीचमें भोजनकी छुट्टी होती होगी। किन्तु मालिकोंने अभी यह नियत नहीं किया है कि उनकी वर्दी किस किस्मके कपड़े की होगी, इसलिए वह अपनी पसन्दके मुताबिक खद्दर पहनते हैं। एक विदेशी पेढ़ी उनको इससे कम घंटे काम करने पर दुगना वेतन देने के लिए तैयार है। लेकिन वह यह नहीं चाहती कि उनकी पोशाक खद्दरकी हो। अब उसके सामने कठिनाई यह है : विदेशी पेढ़ीकी नौकरी मंजूर कर लेने से उनकी आर्थिक स्थिति सुधार जाती है। इतना ही नहीं, उन्हें प्रतिदिन सूत कातने के लिए पर्याप्त समय भी मिल जाता है और उन्हें इसमें विश्वास भी है। किन्तु इसमें उन्हें खहरके कपड़ोंसे वंचित होना पड़ता है जो कि उन्हें बहत प्यारे है। यदि वह जहाँ है वहीं रहते हैं तो उन्हें १२ घंटे काममें पिसना पड़ता है, कष्ट उठाना पड़ता है और सूत कातने का समय भी नहीं मिलता। अब वह क्या करें? इसके बारमें मुझे अपनी राय देनेमें तनिक भी झिझक नहीं है। यदि खहरके प्रश्नको छोड़ भीदें तो भी किसी भी स्वाभिमानी मनुष्यके लिए विदेशी पेढ़ीका प्रलोभन-भरा प्रस्ताव बिलकुल अस्वीकार्य होगा। इसका सीधा-सादा कारण है कि उसके साथ उसकी स्वतन्त्रतापर बेजा प्रतिबन्धकी शर्त जुड़ी है, खास तौरसे तब जब यह प्रतिबन्ध राष्ट्रीय हितके विरुद्ध है और उक्त तथ्योंसे मालूम होता है कि इसके पीछे खद्दरके विरुद्ध उस पेढ़ीका द्वेषभाव है। गुणावगुणोंपर विचार करनेपर भी मैं हर तरहसे खद्दर पहननेकी आजादी पसन्द करूँगा, भले ही समयाभावके कारण फिलहाल सूत कातनेकी इच्छाकी