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भाषण : अभिनन्दनके उत्तरमें
[पुनश्च :]
मेरा दायाँ हाथ दुःखता है इससे फिलहाल यथासम्भव बाएँ हायसे लिखता हूँ।
गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ ४११३) की फोटो-नकल से।
 

२०७. भाषण : अभिनन्दनके उत्तरमें

२२ अक्तूबर, १९२५

गांधीजी 'एस॰ एस॰ रूपवती' से मांडवी[१] जा रहे थे। द्वारकावासियोंको विशेष प्रार्थनापर जहाज द्वारकामें रुका। गांधीजीके प्रति अपना सम्मान व्यक्त करने के लिए और लौटते समय द्वारका आनेका अनुरोध करने के लिए द्वारकावासियोंने अपना एक शिष्टमण्डल भेजा था। शिष्टमण्डलने अपने अभिनन्दनमें उपयुक्त विनम्रता सहित निवेदन किया कि हिन्दू धर्मके, जिसका कि द्वारका एक मान्य तीर्थ-स्थल है, हम तुच्छ प्रतिनिधिगण चाहते है कि आप हमें अपनी सलाह और उपदेशों से लाभान्वित करें।

गांधीजीने इसका उपयुक्त उत्तर देते हुए कहा कि इस बार मेरे लिए द्वारका आना सम्भव न हो, लेकिन यदि आप वास्तवमें सुधार कार्य करना चाहते हैं तो आप सभी विदेशी कपड़ोंका बहिष्कार करके सभी अवसरोंपर शुद्ध खद्दर पहनना आरम्भ करके इसकी अच्छी शुरुआत कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि भारतके तीर्थ-स्थानोंके निवासियोंको विदेशी कपड़ेका बहिष्कार करने में सबसे आगे होना चाहिए। गांधीजीने यह भी कहा कि यद्यपि हिन्दू मूर्तिपूजक होते हैं, लेकिन वे वास्तवमें मूर्तिकी नहीं, अपितु उस मूतिमें अधिष्ठित भगवानको शक्तिकी पूजा करते हैं। उन्होंने शिष्टमण्डलसे अपील की कि वे पूजी जानेवाली मूतिसे सम्बद्ध शक्तिको अपने जीवनमें उतारनेकी कोशिश करें।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २४–१०–१९२५
 
  1. मांडवी जाते समय गांधीजीका जहाज़ रास्तेमें कुछ देरके लिए द्वारकामें रूका था।