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२१०. भाषण : भुजकी सार्वजनिक सभामें[१]

२३ अक्तूबर, १९२५

मैं महाराव-श्रीके पास हो आया हूँ। उन्होंने मेरी बात शान्तिसे सुनी। एक कम महत्त्वकी बातके सिवा बाकी सभी बातें, सभी शिकायतें मैंने उन्हें कह सुनाई। परिणाम क्या होगा, सो नहीं कह सकता। लेकिन इतना कहता हूँ कि मैंने जो सलाह कल दी है यदि आप लोग उसपर अमल करेंगे तो आपके दुःखका उपाय सीधा है। राजाओंको भी मेरी बात किसलिए सुननी पड़ती है? कारण वे सब जानते हैं कि मैं जो बात मनसे मानता हूँ वही व्यक्त करता हूँ। मेरे बोलने में विनय है, मेरे तीखेपनमें मिठास है; मेरे मन में कटुता, मैल, तिरस्कार अथवा द्वेष नहीं है। सत्यमें स्वतः इतना बल होता है कि उसे बढ़ा-चढ़ाकर बतानेकी अथवा उसमें मिर्च-मसाला लगाने की कोई जरूरत नहीं होती। कहा है कि 'सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्' अर्थात् सत्यमें प्रेम होना चाहिए, द्वेष नहीं होना चाहिए, हिंसा नहीं होनी चाहिए। आज तो सत्यको जानने के बावजूद हम सत्यका दिवाला निकाल बैठें हैं। इसलिए आप डरे बिना जो-जो आपको सच लगे वह राजासे कहें—सच्ची शिकायतें करना आपका अधिकार है। इतना ही नहीं, वह आपका धर्म है।

गोरक्षाके प्रश्नको तथाकथित गोसेवकोंने ही बिगाड़ा है। मुसलमान लोग कुरबानीकी खातिर जितनी गायोंकी हत्या करते हैं, हिन्दू लोग व्यापारकी खातिर उनसे कहीं सौ-गुनी अधिक गायोंकी हत्या करते हैं। हिन्दुस्तानमें बूचड़खाने केवल मुसलमानोंके लिए ही नहीं चलते; वे सेना और चमड़ेकी खातिर चलते हैं। कसाईगिरीके फलने-फूलनेका कारण हिन्दुस्तानके करोड़पतियोंका हिन्दूधर्म सम्बन्धी अज्ञान और वैष्णव धर्मावलम्बियों तथा हमारे धर्म शिक्षकोंमें धर्मके ज्ञानकी कमी अथवा शिथिलता है। गायें हिन्दुओंकी ही हैं, इसलिए गाय बेचनेवाले भी हिन्दुओंके सिवा दूसरे कोई नहीं लोग आज जो जूता पहनते है सो ज्यादातर मारे हुए पशुओंके चमड़ेका ही होता है, और यह इसलिए कि मरे हुए पशुके चमड़ेको आसानीसे नहीं पकाया जा सकता। यदि इन पशुओंकी रक्षा करनी हो तो करोड़पतियोंको दूधके और चमड़े के व्यापारको अपने हाथमें लेना ही होगा। यह साध्य बन सके, इसीलिए मैं आप सबसे चन्दा माँगता हूँ।

आप चाहते हैं कि मैं जो चन्दा इकट्ठा करूँ उसका उपयोग केवल कच्छमें ही हो। केवल कच्छ के लिए मैं आपके पास क्यों आऊँ? इसके लिए तो आप स्वयं पैसा इकट्ठा कर सकते हैं। मेरे हाथसे जो पैसा इकट्ठा होता है वह हिन्दुस्तानके गरीबोंके लिए इकट्ठा होता है। १९२१ में जब हमने बम्बईमें ३८ लाख रुपया इकट्ठा किया था तब क्या कच्छी लोगोंने अपने पैसेका उपयोग कच्छमें करने की शर्त रखी

 
  1. महादेव देसाईके यात्रा विवरणसे उद्धृत।