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ईश्वर-भजन

थी? ऐसी शर्त रखकर यदि मेरे कच्छी मित्र मुझे पैसे देते हों तो मैं उनसे एक कौड़ी भी न लूँगा। मैं तो हिन्दुस्तानकी गरीब गायोंके लिए पैसा माँगता हूँ, गरीब बहनोंके शीलकी रक्षाके लिए पैसा माँगता हूँ, भूखों मरनेवाले करोड़ों व्यक्तियोंका पेट भरने के लिए पैसे माँगता हूँ। यदि आप इस स्वल्प दृष्टिवाली नीतिका आग्रह करेंगे कि "कच्छीका पैसा कच्छमें" तब तो पृथ्वी रसातलमें चली जायेगी। आप मुझे जो पैसा देते हैं मुझमें उसका उपयोग करनेकी शक्ति अथवा विवेक है या नहीं—यदि आपके मनमें इस विषयमें सन्देह हो तो आप मुझे कुछ भी न दें। आप याद रखें कि कच्छ तो हिन्दुस्तानमें बिन्दु-मात्र है और इस बिन्दुको चाहिए कि वह विशाल हिन्दुस्तानके लिए त्याग करे अपनी आवश्यकताके लिए आप अपने नामसे पैसा इकट्ठा करें। मेरे नामसे आप इकट्ठा करें, यह बात आपको शोभा नहीं देती और न मुझे देती है। मुझे मारवाड़ियोंने पैसा दिया है सो क्या उसका उपयोग मारवाड़में ही करने की शर्त के साथ दिया है। उन्होंने मुझे मद्रासमें हिन्दीके प्रचारके लिए पैसा दिया है—एक लाख रुपया दिया है। गोरक्षाके लिए भी वे आज प्रचुर धन दे रहे हैं। उन्होंने बिहारके लिए ढेरों दिया। मैं कल ही विहारके मारवाड़ियोंसे ढेरों रुपया लेकर आया हूँ। उनमें से किसीने भी मुझसे यह नहीं कहा कि अमुक पैसा मारवाड़में लगाना। ऐसी शर्त मैने अत्यन्त दुःखके साथ कच्छियोंके मुखसे ही सुनी है। समस्त हिन्दुस्तानको पैसा देना आपका धर्म है; कारण, उससे आप पैसा प्राप्त करते हैं, उसके साथ व्यापार करके ही पैसा प्राप्त करते है। उसका बदला तो आपको देना ही चाहिए।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १–११–१९२५
 

२११. ईश्वर-भजन

२५ अक्तूबर, १९२५

एक पारसी भाईने ईरानसे एक पत्र[१] लिखकर कुछ गम्भीर प्रश्न किये हैं। मैं उन्हें यहाँ उन्हींकी भाषामें दे रहा हूँ। उन्होंने दो-तीन जगहोंपर अंग्रेजी शब्दोंका भी प्रयोग किया है। मैं यहाँ उनके पर्याय ही दूंगा।

ईश्वरकी इच्छाके बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता तो फिर मनुष्यके हाथमें करनेको बाकी ही क्या रह जाता है, यह प्रश्न अनादि है और सदा उठता ही रहेगा। लेकिन इसका जवाब भी तो सवालके अन्दर है; क्योंकि सवाल पूछनेकी शक्ति भी तो ईश्वरकी ही दी हुई है। जिस प्रकार हम लोग अपने किन्हीं नियमोंके अधीन चलते हैं, उसी प्रकार ईश्वर भी किसी नियमके अनुसार चलता है। हमारे नियमकानून और ज्ञान अपूर्ण होते हैं, इसलिए हम लोग अपने कानूनोंका सविनय-अविनय

 
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