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कांग्रेसमें सविनय अवज्ञा

लयोंकी स्थापना करनेका शौक था। इसपर स्कॉटलैंडके अध्यापकोंने उन्हें सावधान रहनेकी चेतावनी दी थी और कहा था कि उन्हें विशेषज्ञोंकी सलाह लेकर दान करना चाहिए। दानवीरोंको दान देने में विवेक बरतनेकी सलाह देना और उनका उसको ध्यानमें रखना जरूरी है। सब तरहके दानसे पुण्य ही होता है, ऐसा माननेका कोई कारण नहीं है। मारवाड़ी भाई सच्चे गोरक्षक है। वे उस काममें खूब पैसा खर्च करते हैं लेकिन उसमें भी वे हमेशा विवेकसे काम नहीं लेते। यदि गोरक्षामें कोई समर्थ है तो वे मारवाड़ी भाई है क्योंकि गोरक्षाके लिए मुख्य रूपसे धन और व्यापारीबुद्धि होना जरूरी है। ये दोनों उनके पास है। यदि इनका विवेकपूर्वक उपयोग हो तो विशाल पैमानेपर सच्ची गोरक्षा हो सकती है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २-८-१९२५
 

८. कांग्रेसमें सविनय अवज्ञा

नवजीवन में हम कई बार देख आये है कि जिसे हम अपना शत्रु मानते हों अथवा जो हमें अपना शत्रु मानता हो सविनय अवज्ञा केवल उसीके खिलाफ नहीं बल्कि जिन्हें हम अपना मित्र अथवा बुजुर्ग समझते हों उनके खिलाफ भी की जा सकती है। आज कांग्रेसके सम्बन्धमें इसका प्रयोग करनेका समय आ गया है। कांग्रेसके संविधानमें जो सुधार आवश्यक है, वे अन्यत्र दिये गये है। परन्तु, सामान्यतः अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीको ये सुधार करनेका अधिकार नहीं है। ये सुधार संविधान में परिवर्तन करके ही किये जा सकते हैं। ऐसा करनेका अधिकार कांग्रेसको ही है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीको जो अधिकार दिये गये हैं, यह अधिकार उनमें नहीं आता। इसके लिए कमेटीको अपनी असाधारण सत्ताका उपयोग करना पड़ेगा। इस असाधारण सत्ताको दूसरे शब्दोंमें काननके प्रति सविनय अवज्ञा कहा जा सकता है। प्रसंग आनेपर ऐसी अवज्ञा करनेका अधिकार सबको और सब संस्थाओंको है, यही नहीं, बल्कि वह उनका धर्म हो जाता है। मैंने जो सुधार सुझाये हैं, यदि हम उनकी आवश्यकता मानते हों तो इस समय हमपर इस धर्मके पालनका दायित्व आ चुका है। कांग्रेसकी बैठकमें तो इस बातकी चर्चा अवश्य होनी चाहिए। दूसरेका काता हुआ सूत मोल लेकर देनेका नियम बंद होना ही चाहिए, क्योंकि इस शर्तसे कताई की दिशामें कोई लाभ नहीं हुआ; इतना ही नहीं, दम्भ और असत्यकी वृद्धि हुई है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी यह आवश्यक परिवर्तन न करे तो वह धर्मच्युत मानी जायेगी; क्योंकि इस तरह देशके दो-चार मास व्यर्थ जायेंगे। यदि देशबन्धुका अवसान न हुआ होता और लॉर्ड बर्कनहेडने जो भाषण दिया है, वैसा न दिया होता, तब तो शायद इस विषयमें मतभेदके लिए गुंजाइश रहती; पर अब नहीं है। हो सकता है, कमेटीके कुछ सदस्य तात्कालिक आवश्यकताको स्वीकार न करें। उस हालतमें उन्हें सविनय अवज्ञा करनेका अधिकार नहीं है; और इसलिए मैंने अपना यह