कठिनाई हो रही थी वह अब दूर हो गई है। लेकिन जितना समय बाकी है उतने समयमें पूरी तैयारी करने के लिए बहुत सारे स्वयंसेवकों और धनकी मददकी जरूरत होगी। मुझे उम्मीद है कि स्वागत समितिको यह मदद मिलेगी और काम शीघ्रतासे चलेगा।[१]
- [गुजरातीसे]
- नवजीवन, २५–१०–१९२५
२१३. पत्र : तुलसी मेहरको
कार्तिक सुदी ८ [२५ अक्तूबर, १९२५][२]
चि॰ तुलसी मेहर,[३]
तुम्हें बुखार आनेकी बात मैंने सुनी थी लेकिन मैंने उसकी कोई चिन्ता नहीं की थी। अब भाई किशोरलाल लिखते हैं कि तुम्हारा शरीर अत्यन्त दुर्बल हो गया है और संभल नहीं रहा है, फिर भी तुम दूध रहित आहारसे चिपके हुए हो। उस पत्रके मिलनेपर मैंने तुम्हें तार[४] तो भेज ही दिया था। तुमने दूध शुरू कर दिया। होगा। कोई व्रत तो नहीं लिया है न? दूध छोड़नेके प्रयोग मुझे पसन्द है, लेकिन जबतक उस प्रयोगको मैं सफल नहीं बना सकता तबतक साथियोंके आरोग्यको जोखिममें डाल देनेकी बातसे मैं सहमत नहीं हो सकता। इसलिए तुम दुर्बल हो जाने के बावजूद दूधके त्यागसे चिपके रहो, यह बात बरदाश्त नहीं की जा सकती। तुमने दूध शुरू न किया हो तो कर देना। अभी तो दूध और फलपर ही रहना। जैसे-जैसे शरीरमें ताकत आती जाये वैसे-वैसे गहें, चावल आदि लेना। यदि दस्त ठीक तरहसे न होता हो और जरूरत जान पड़े तो किसी विशेष ठण्डे स्थानपर जाकर रहो।
मुझे ब्योरेवार उत्तर देना। तुम्हें ईश्वर जल्दी स्वस्थ करे।
साथका पत्र शान्ति-मेनलीको देना। जवाब माण्डवी लिख भेजोगे तो मुझे मिल जायेगा। मैं आज भुज छोड़नेवाला हूँ
बापूके आशीर्वाद
गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ ६५२१) की फोटो-नकलसे।