पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/४३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२१५. पत्र : देवचन्द पारेखको

सोमवार [२६ अक्तूबर, १९२५][१]

भाई देवचन्दभाई,

मुझे तुम्हारा उपजातियोंके बारेमें लिखा पत्र मिला है। हम थोड़े ही समय में कहीं-न-कहीं मिलनेवाले तो है ही। उस समय तुम्हारे मसौदेके बारे में थोड़ी बातें करके बादमें जो उचित होगा सो करेंगे।

मैंने पटवारीसे एक निजी पत्र लिखकर कहा है कि यदि वे सहमत हों तो मैं मोरवी जाते हुए आश्रममें रुक सकता हूँ और वहाँ समिति की बैठक बुलाई जा सकती है। जवाब अभी आया नहीं है। आ जाना चाहिए था। यदि नहीं ही आया तो फिर मैं जामनगर होता जाऊँगा। जामनगरमें समितिको बैठक नहीं की जा सकेगी। ऐसा लगता है कि अब तो समय भी नहीं रहेगा। इसलिए समितिको बैठक आश्रममें ही करनी पडेगी। मझे आश्रममें ७ तारीखतक पहुँच ही जाना चाहिए।

इस बारेमें यदि तुम्हें कोई सुझाव देना हो तो माण्डवी लिखना। मैं २९, ३० को माण्डवी रहूँगा, रविवार और सोमवारको अंजारमें।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ ५७२३) की फोटो-नकलसे।

 

२१६. पत्र : मणिबहन पटेलको

सोमवार [२६ अक्तूबर, १९२५][२]

चि॰ मणि,

तुम्हारा पत्र मिला। तुम्हारे जल जाने की बात भी सुनी। अब तो थोड़े ही दिनोंमें वहाँ आना है, इसलिए मिलेंगे तब बातें करेंगे। हाथ बिलकुल अच्छा हो गया होगा। डाह्याभाईके साथ लम्बी बातचीत हुई है। आजकल ही में फिर बात करूँगा। वहाँ पहुँचनेसे पहले किसी निश्चयपर पहुँच जायेंगे। तुम्हारे लिये मैंने तो निश्चय कर ही लिया है।

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
बापुना पत्रो—मणिबहेन पटेलने
 
  1. पत्रमें, गांधीजीने देवचन्द पारेख माण्डवी (कच्छ) उत्तर देनेके लिए कहा है। वे ३० और ३१ अक्टूबरको वहाँ थे। पिछला सोमवार २६ अक्टूबरको पड़ा था।
  2. साधनसूत्र के अनुसार।