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२१७. टिप्पणियाँ
ऊनी या सूती

एक मित्र पूछते हैं कि पहाड़ी लोग, जो सूती कपड़ेका कभी इस्तेमाल ही नहीं करते हैं और जिनके पास बहुत-सी ऊन रहती है और जो ऊनके ही कपड़े पहनते हैं, क्या वे सूतके बजाय कता हुआ ऊन भेजकर कांग्रेसके सदस्य बन सकते हैं। पहाड़ी लोग कता हुआ ऊन भेजकर अवश्य ही कांग्रेसके सदस्य बन सकते हैं। रुईका महत्त्व नहीं बल्कि हाय-कताईका है। और मैं आशा करता हूँ कि कांग्रेसके जो कार्यकर्त्ता पहाड़ी इलाकों में भरसक काम कर रहे है, ऊन कातनेवालोंके नाम कांग्रेस और अखिल भारतीय चरखा संघमें दर्ज करायेंगे।

एक कातनेवालेकी कठिनाई

एक पत्र-लेखक लिखते हैं:

अखिल भारतीय चरखा संघके चन्देका सूत भेजनेमें जो डाक खर्च आता है, वह सूतके दामोंसे भी ज्यादा पड़ जाता है। क्या इस खर्चको बचानेका कोई रास्ता नहीं है? क्या सब पैकेट रजिस्ट्री कराके हो भेजने चाहिए? यदि नहीं तो क्या वे बैरंग भेज दिये जायें?

अहमदाबादके प्रस्तावके अनुसार जब सूत अ॰ भा॰ खादी-संघको भेजा जाता था तभी इस आपत्तिपर विचार कर लिया गया था। अभी या कभी भी साराकासारा डाकखर्च बचा लेना तो असम्भव मालूम होता है। लेकिन आज भी बहुत कुछ बचाया जा सकता है। सूतके पैकेटोंको रजिस्ट्री कराके भेजनेकी कुछ भी आवश्यकता नहीं है। और बैरंग पैकेट भेजनेसे भी काम नहीं चलेगा। डाकखर्च तो सूत भेजनेवालोंको ही देना होगा। लेकिन इसकी कोई वजह नहीं मालूम होती है कि हरएक सदस्य अपना सूत अलग-अलग क्यों भेजे। हरएक गाँवमें या मुहल्ले में जहाँ सदस्य एक दूसरेके नजदीक-नजदीक रहते हों, वहाँ उनमें से एक शख्स सब सूत एक जगह जमा कर ले और फिर सारा ही एक पार्सलमें बांधकर भेज दे। यदि उनमें से कोई काम करने के लिए आगे बढ़े और उसकी जवाबदेही अपने सिर ले ले तो यह आसानीसे हो सकेगा। और सालाना चन्देका बारह किश्तोंमें अलग-अलग भेजना भी जरूरी नहीं है। जिन्हें काफी समय मिलता है, वे एक महीने में ही १२,००० गज सूत कातकर उसका एक पार्सल बनाकर भेज सकते हैं। या फिर यदि चाहें तो उतनी किश्तोंमें भी भेज सकते हैं जितनी में उन्हें आसानी मालूम हो। अब प्रश्न यह है कि इसमें रोजाना नियमपूर्वक कातनेकी बात कहाँ रही। चन्दा दे देनेपर भी रोजाना नियमपूर्वक कताई करनी चाहिए और इस प्रकार जो सूत तैयार हो, वह खुद कातनेवालेके अपने उपयोगमें आ सकता है। हाथकता १२,००० गज