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संयुक्त प्रान्तके अनुभव

सभाको आपके जरिये कोई सन्देश भेजना चाहें तो आपको उसमें क्या कोई आपत्ति होगी?

मौलाना शौकत अलीने मेरे द्वारा विहार खिलाफत सम्मेलनको कोई भी सन्देश नहीं भेजा। यदि उन्होंने ऐसा किया भी होता, तो यदि वह सन्देश आपत्तिजनक न होता, तो मैं अवश्य ही उनका सन्देश पहँचा देता। यदि पण्डित मालवीयजी और लाला लाजपतराय मुझे ऐसा ही कोई काम सौंपे, तो मैं उसे भी अवश्य ही करूँगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २९–१०–१९२५
 

२१९. संयुक्त प्रान्तके अनुभव
जर्जर मंच

हाजीपुरमें मेरी बिहार-यात्रा समाप्त हुई। हाजीपुरमें व्यवस्था और शान्ति बड़ी अच्छी रही। हमें राष्ट्रीय पाठशालाके छोटे-छोटे मकानोंमें ठहराया गया था और यद्यपि उसीके सामने एक बड़ी भारी सार्वजनिक सभा की गई थी, लेकिन स्वयं सेवकगण अनुशासित थे और भीड़के लोगोंको पहले ही से इत्तिला दे दी गई थी कि मैं शोर, धक्का-मुक्की और भीड़ द्वारा पैर छूना इत्यादि सहन करने लायक नहीं हैं। इससे उस पाठशालाके अहातेके चारों ओर सैकड़ों आदमियोंके होते हए भी मझे पूरी शान्ति मिल गई थी। बिहारमें जितनी भी राष्ट्रीय पाठशालाएँ हैं, उनमें शायद इसी पाठशालाकी व्यवस्था सबसे उत्तम है और इसमें शिक्षक भी उत्तम कोटिके हैं। उत्तम चरित्रवाले असहयोगी वकील जनकधारी बाब इसके प्रधानाचार्य हैं। हाजीपूरमें बाबू इसके प्रधानाचार्य है। हाजीपुरमें करीब ५,००० रु॰ की एक थैली भी भेंट की गई थी। इस प्रकार ऐसी आह्लादजनक समाप्तिके साथ और सोनपुरम एक सेवाश्रमका उद्घाटन करते हुए मन अपनी बिहार यात्रा समाप्त की। सेवाश्रम उन हजारों लोगोंको आराम पहुँचाने और उनकी आवश्यकताओं को पूरा करनेके लिए खोला गया है जो हिन्दुओंके नववर्षके प्रथम मासकी पूर्णिमाको सोनपुरके अनोखे मेले में प्रति वर्ष जमा होते हैं। सोनपुरके इस मेलेमें उत्तमोत्तम घोड़े, हाथी, गाय, बैल इत्यादि पशु दूर-दूरसे आते हैं। इसके बाद बिहारका दौरा समाप्त हो गया और मैंने संयुक्त प्रान्तमें प्रवेश किया। पहला मुकाम बलियामें रहा।

यद्यपि सोनपुरसे बलियाका रास्ता सिर्फ चार घंटेका था, लेकिन इसमें मुझे बड़ी तकलीफ हुई। यहाँकी सभा भी मुझे एक बड़ी ही कष्टप्रद कसौटी लगी और विहारमें मैने जो देखा और अनुभव किया था, उसके ठीक विपरीत यहाँ अनुभव किया। जिस रेलगाड़ीसे हम लोग छपरासे बलिया गये वह बहुत धीमी चलती थी और कुछ मिनिटोंके अन्तरपर ही स्टेशन आ जाते थे। हरएक स्टेशनपर एक बड़ी भारी भीड़ होती थी। लोग बड़ा शोर मचाते थे और स्वयंसेवक उन्हें नियन्त्रित रखने में असमर्थ रहते थे। मैं यह जानता हूँ कि इन सबका कारण उनका मेरे प्रति अन्धा और अतिशय प्रेम ही है। मुझे १९२१ में ही बलिया जाना चाहिए था, लेकिन