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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हूँ, लेकिन वह भाषा लखनवी उर्दू या संस्कृतनिष्ठ हिन्दी नहीं हो सकती। वह भाषा तो हिन्दुस्तानी ही होगी और हिन्दी और उर्दू जाननेवाले लोग जिन शब्दोंका आमतौर पर प्रयोग करते हैं, वह उन्हीं शब्दोंसे मिलकर बनेगी। उसे हिन्दू और मुसलमान दोनों आसानीसे समझ सकेंगे। लखनऊकी नगरपालिका खास करके स्वराज्यवादियोंके हाथोंमें है। उनके पहलेके सदस्योंके कार्यके मुकाबले उनका काम किसी तरह कम नहीं है। लेकिन मैंने अपने उन श्रोताओंसे कहा कि सिर्फ अपने पहले कार्यकर्त्ताओंके बराबरके स्तरका ही काम कर सकनेपर सन्तोष मान लेना ठीक नहीं है। कांग्रेसके लोग जहाँ कहीं, जिस किसी भी संस्थाको अपने हाथमें लेते हैं, वहाँ उन्हें अधिक अच्छा काम करके दिखाना चाहिए। और इसीलिए लखनऊकी सड़कोंका इतना खराब होना, विचारणीय बात है। रुपयेकी कमीका कोई बहाना नहीं है, क्योंकि कांग्रेसियोंसे तो यह आशा रखी जाती है कि वे स्वयं कुदाली और फावड़ा लेकर स्वेच्छासे मेहनत करके सड़कोंको दुरुस्त करेंगे। मैंने नगरपालिकाको उसके डेरीके प्रयोगके लिए मुबारकबाद दिया और उसे यह चेतावनी भी दे दी कि जबतक वह अपनी हदमें रहनेवाली जनताको सस्ता और अच्छा दूध न पहुँचा सके, तबतक उसे कदापि सन्तोष नहीं होना चाहिए।

नगरपालिकाके अभिनन्दन-पत्रमें हिन्दू-मुस्लिम प्रश्नपर जानबूझकर कोई बात नहीं कही गई थी। फिर भी मित्रों (नगरपालिकाके बहुतसे हिन्दू और मुसलमान सदस्य मेरे मित्र थे) के साथ बातचीतके दौरान इस प्रश्नको छोड़ना सम्भव नहीं था और इसलिए इन दोनों समाजोंमें जो तनाव बढ़ता जा रहा है, उसपर मुझे कुछ कहना पड़ा। मैंने उनसे कहा कि हिन्दुस्तानके दूसरे हिस्सोंमें कुछ भी क्यों न हो, कमसेकम लखनऊमें तो दोनों समाजोंको अपने मतभेद दूर करके ऐसी एकता स्थापित कर लेनी चाहिए कि कैसी भी स्थिति उत्पन्न क्यों न हो जाये और हिन्दुस्तानके दूसरे भागोंमें कैसे भी झगड़े क्यों न चलते रहें, यहाँ एकता कभी टूटे ही नहीं।

समय निकालकर थोड़ी देरके लिए मैं लखनऊ के महिला कालेजमें भी गया। यह विद्यालय अमेरिकी मिशनका है और यह कहा जाता है कि सारे एशियामें अपने ढंगका यह सबसे पुराना कालेज है। मैंने देखा कि हिन्दुस्तानके सभी प्रान्तोंकी लड़कियाँ वहाँ पढ़ती हैं। उन्होंने अपनी हस्ताक्षर पुस्तिकामें मेरे हस्ताक्षर कराने के लिए मझे घेर लिया। इसके पहले अपनी शर्त बताकर बहुतोंको अपने हस्ताक्षर दे चुका हूँ, शर्त यह है कि जो लोग मुझसे मेरे हस्ताक्षर चाहें, उन्हें खादी पहननी चाहिए और नियमपूर्वक कातना चाहिए। मैंने लड़कियोंको भी यह शर्त सुनाई। उन्होंने बिना हिचक फौरन ही उसे स्वीकार कर लिया और वहाँकी लेडी सुपरिटेंडेंटने मुझे इस बातका यकीन दिलाया कि वह स्वयं इस बातका ध्यान रखेगी कि लड़कियाँ अपना वादा धर्म-भावनासे निभाएँ।

सीतापुरमें

लखनऊसे हम लोग मोटर द्वारा सुबह कोई १० बजे सीतापुर पहुँचे। मैं अपने मुकामपर पहुँचूं उसके पहले ही मुझे हिन्दू-सभाका अभिनन्दन-पत्र ग्रहण करनेके लिए