पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/४४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४१६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

था, बल्कि कांग्रेसकी विचारधारावाली आम जनताकी रायका वह एक स्पष्ट संकेत था। मेरे बाद पण्डित मोतीलालजीने व्याख्यान दिया। उन्होंने पटनाके निर्णयको विस्तारपूर्वक समझाया, और चरखा और खादीमें अपनी व्यक्तिगत श्रद्धा प्रकट करते हुए साथ ही यह भी कहा कि जबतक कांग्रेस प्रधानतः राजनैतिक संस्था न बन जायेगी तबतक वह पूरी तरहसे लोगोंकी प्रतिनिधि संस्था नहीं बन सकेगी। पण्डितजीका प्रस्ताव जिसमें पटनाके निर्णयका समर्थन किया गया था, पास करने और चरखा संघकी स्थापनाका अनुमोदन करनेके बाद सब प्रतिनिधि गुजराती तम्बूमें गये और वहाँ उन्होंने सीतापुरमें रहनेवाले गुजराती व्यापारियों द्वारा दिया गया जलपान ग्रहण किया।

मेरा संयुक्त प्रान्तका दौरा, यदि उसे दौरा कहा जा सकें तो, लखनऊसे आये हुए हिन्दू-सभाके एक प्रतिनिधि मण्डल के साथ हुई लम्बी और हार्दिकतापूर्ण बातचीतके साथ समाप्त हआ। यह शिष्टमण्डल लखनऊमें हिन्दू-मुस्लिम तनावके बारेमें बात करने आया था। मैंने बताया कि विवादमें पंच बननेका मने जो वादा किया था उससे मैं हटा नहीं है। मैंने उनसे कहा कि पिछले वर्ष मैने दोनों पक्षोंसे दिल्लीमें उनके साक्ष्य सुनने को कहा था, लेकिन साथ ही मैंने उन्हें यह भी बताया कि अब बदली हुई परिस्थितियों में शायद दोनों ही पक्ष विवादग्रस्त मामलेको मेरे सामने न रखना चाहें। किन्तु यदि वे चाहेंगे तो मैं खुशीसे लखनऊ जानेका समय निकालूंगा और उनके मामले में पंच बनकर निर्णय दूँगा। जब उन्होंने कहा कि हिन्दू लोग चाहेंगे कि मैं पंच-फैसला करूँ तब मैंने उन्हें सलाह दी कि वे मुसलमानोंके पास भी जायें और फिर मुझे इस बातको इत्तिला दें कि दोनों दलोंके नेतागण मेरे दिये हुए फैसलेको कुबूल करने के लिए तैयार है या नहीं।

इस प्रकार मेरी बिहार और संयुक्त प्रान्तकी यात्रा समाप्त हुई। यह विवरण लिखते समय में कच्छमें हूँ जहाँ महादेव देसाई मेरे साथ हैं, और वे इस अनोखे और सबसे अलग पड़े प्रदेशके दिलचस्प अनुभवोंका विवरण लिखनेका कार्यभार संभालेंगे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २९–१०–१९२५