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२२०. नगरपालिका-जीवन

जान पड़ता है नगरपालिकाओं और स्थानीय निकायों द्वारा प्रमुख कांग्रेसीजनोंको मानपत्र देने का रिवाज अब स्थायी हो गया है। इसके फलस्वरूप मुझे लगभग समस्त भारतमें नगरपालिकाओंकी कार्यप्रणालीको थोड़ा-बहुत देखनेका अवसर मिला है। एकाधिक नगरपालिकाओंके अवलोकनके बाद मैं इस निष्कर्षपर पहुँचा हूँ कि उनके सन्मुख सबसे बड़ी समस्या सफाईकी है जिसे उन्हें हल करना है। मैं मानता हूँ कि यह बहुत ही बड़ी समस्या है। हमारी कुछ राष्ट्रीय आदतें इतनी बुरी है कि जिनका वर्णन नहीं किया जा सकता। और वे इतनी गहरी जमी हुई है कि वे सभी मानवीय प्रयत्नोंको व्यर्थ कर देती हैं। जहाँ भी मैं जाता हूँ यह गन्दगी किसी न किसी रूपमें मेरी दृष्टिको अपनी ओर खींचती है। पंजाब और सिन्धमें स्वास्थ्यके प्रारम्भिक नियमोंकी परवाह न करते हुए हम अपने चबूतरों और छतोंको गन्दा कर देते हैं। वहाँ करोड़ों रोगाणु पैदा हो जाते है और मक्खियोंको वहाँ बस्ती बन जाती है। दक्षिण भारतमें हम अपनी गलियोंको गन्दा करने में भी नहीं झिझकते। सुबहके वक्त किसी भी संकोचशील व्यक्तिके लिए इन गलियोंमें से होकर निकलना असम्भव होता है, क्योंकि इनमें लोग शौच करने के लिए पंक्ति बाँधे बैठे होते हैं। सामान्यतः यह क्रिया एकान्तमें और ऐसे स्थानोंमें पूरी की जाती है जहाँ साधारणतः लोगोंको जानेकी जरूरत नहीं होती। बंगालमें भी ऐसी ही स्थिति है, लेकिन वहाँ उसका दूसरा रूप है। लोग जिस तालाबमें नहाते और कपड़े और बर्तन धोते हैं एवं जिसमें पशु भी पानी पीते हैं, उसीके जलको पीनेके काममें भी लाते हैं। यहाँ कच्छमें स्त्री-पुरुष उन्हीं बातोंको बिना ध्यान दिये करते रहते है जो कि मैंने मद्रासमें देखी हैं। कच्छके ये लोग मूर्ख नहीं है; ये निरक्षर भी नहीं हैं। उनमें से बहुतसे भारतसे बाहर दूसरे देशोंकी यात्रा कर चुके हैं। उनको इन बातोंकी अधिक जानकारी होनी चाहिए; किन्तु उन्हें नहीं है। उन्हें सफाईके बारेमें प्रारम्भिक बातोंकी शिक्षा देनेकी कोई भी चिन्ता नहीं करता। नगरपालिकाओं और स्थानीय निकायोंका यह विशेष कर्त्तव्य है या होना चाहिए कि वे अपनी सीमाके अन्दर गन्दगी दूर करनेका खास ध्यान रखें। यदि हमें शहरोंमें रहना है, यदि हमें संगठित जीवन बिताना है. यदि हमें अपना स्वास्थ्य और बुद्धिवल बढ़ाना है तो हमें कभी-न-कभी गन्दगीसे मुक्त होना ही पड़ेगा। हम इस कामको जितनी जल्दी कर लें, उतना ही अच्छा है। हमें हर कामको स्वराज्य मिलनेतक स्थगित नहीं कर रखना चाहिए। निस्सन्देह कुछ काम ऐसे है जो तभी किये जायेंगे जब हमें अपनी अत्यन्त वांछित वस्तु, अर्थात् स्वराज्य, मिल जायेगा। किन्तु यदि हम उन बहुतसे कामोंको, जिन्हें कि हम आज भी उसी आसानीसे कर सकते है, जिस आसानीसे स्वराज्य मिलनेपर कर सकेंगे और जो हमारे सामूहिक और सभ्य राष्ट्रीय जीवनके प्रतीक हैं, नहीं करते तो स्वराज्य कभी नहीं मिलेगा।

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