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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस समस्याका समाधान जितनी अच्छी तरह और जितनी जल्दी हमारी नगरपालिकाएँ कर सकती हैं उतनी जल्दी और उतनी अच्छी तरह कोई अन्य संस्था नहीं कर सकती। जहाँतक मैं जानता हूँ उनको इस सम्बन्धमें जितने अधिकारोंकी जरूरत है, वे सब उन्हें प्राप्त है और यदि आवश्यकता हो तो उन्हें अधिक अधिकार भी मिल सकते हैं। अभाव प्रायः केवल संकल्पका ही देखा जाता है। इस बातको लोग अभी अनुभव ही नहीं करते कि जो नगरपालिका आदर्श पाखाने नहीं बनाती और जिसके क्षेत्रमें सड़कें और गलियाँ चौबीसों घंटे बिल्कुल साफ-सुथरी नहीं रखी जाती उसको कायम रहनेका कोई हक नहीं है। किन्तु यह सुधार नगरपालिकाओं और स्थानीय निकायोंके सदस्योंके अथक उद्योगके बिना नहीं किया जा सकता। यह खयाल करना कि जब नगरपालिकाएँ ऐसा करने लगेगी तो हम भी काम शुरू करेंगे, सुधारको अनन्त कालतक टालना है। जिन लोगोंमें सच्चे दिलसे सुधार करनेकी इच्छा और क्षमता है, उन्हें उसे प्रारम्भ कर देना चाहिए, शेष कार्य अपने आप हो जायेगा।

इस उद्देश्यको ध्यानमें रखकर ही मैं अहमदाबादके डाक्टर हरिप्रसाद देसाईके लिखे हुए एक विनोदपूर्ण पत्रका अनुवाद अन्यत्र छाप रहा हूँ। यह पत्र अभी हालमें 'नवजीवन' में छप चुका है।[१] अहमदाबादकी नगरपालिकाने इस समस्याको गम्भीरतापूर्वक हाथमें लिया है। अहमदाबाद ऐसा शहर है जहाँ सफाईकी दृष्टि से व्यवस्था करना साधारणतः कठिन है। यह बहुत गन्दा शहर है। मैंने इससे ज्यादा गन्दा शहर दूसरा कोई नहीं देखा। इसके नाबदान दुर्गन्ध और गन्दगीसे सड़ते रहते हैं। लोगोंमें अन्धविश्वास और पूर्वग्रह इतना ज्यादा है कि उनपर काबू पाना मुश्किल है। गन्दगीको प्रायः धार्मिक मान्यता प्राप्त है। गन्दी आदतोंके पक्षमें अहिंसाके सिद्धान्ततक की दुहाई दी जाती है। मेरा पाठकोंसे अनुरोध है कि वे उक्त पत्रके अनुवादको ध्यानसे पढ़ें और उसपर सोचें तब वे समझेगे कि अहमदाबादमें सुधारकोंके सामने कितनी बड़ी कठिनाइयाँ है। इस कठिन और अप्रशंसित कार्यको करने के लिए स्वयंसेवक भी पर्याप्त नहीं मिलते। पाठक यह भी देखेंगे कि इस कामको नगरपालिकाके वे सदस्य कर रहे हैं जो अहमदाबादको सफाईकी दृष्टिसे आदर्श नगर बनाना चाहते हैं। वे इस कामको अपने दफ्तरके वक्तके अलावा और बिना कुछ पाने की आशा किये कर रहे हैं। यदि कोई नगरपालिका केवल अपना रोजमर्राका काम पूरा करके और अपने अधिकारियोंको हिदायतें देकर सन्तुष्ट हो जाती है तो उससे किसी विशेष अच्छे परिणामकी आशा नहीं की जा सकती। यदि भारतके नगरोंको इस योग्य बनना है कि उनमें गरीबसे-गरीब लोग भी साफ और अच्छी हालतमें रह सकें तो नगरपालिकाके प्रत्येक सदस्यको अपने शहरमें स्वयं भंगी बनना होगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २९–१०–१९२५
 
  1. देखिए "अहमदाबादमें सफाई", ५–११–१९२५।