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गोरक्षाकी योजना

उन्हें छात्रवृत्ति भी दी जायेगी। इसमें मेरे हिसाबसे सालाना कोई ५,००० रुपये खर्च होंगे।

(३) मण्डलके लिए एक पुस्तकालयकी भी आवश्यकता है। उसमें पशु-संवर्धन, उनके पालन-पोषण, दूध शोधक संयन्त्र और चर्मालय इत्यादि विषयोंसे सम्बन्ध रखनेवाली पुस्तकें होनी चाहिए। इसके लिए कोई ३०० रुपयोंकी आवश्यकता है। यह महज एक अन्दाज है।

(४) डेरीका प्रयोग करने के लिए अर्थात् डेरीके कार्यमें कुशल व्यक्तिको नियुक्तकर उससे उसकी रिपोर्ट तैयार कराने में, किसी शहर-विशेषकी उस दृष्टि से जांच कराने इत्यादिमें आरम्भिक व्ययके लिए कोई १०,००० रुपये की आवश्यकता होगी।

इस प्रकार एक सालमें इस योजनामें १,४३,१०० रुपये खर्च होंगे। चर्मालयमें तो रुपये लागतके तौरपर लगेंगे। और यह कल रकम १,३०,००० रुपये अन्य आरम्भिक खर्च प्रशिक्षण और जाँच-पड़तालका है।

मण्डलका सामान्य खर्च इसमें नहीं गिना गया है, क्योंकि यदि उसके सभासदोंके चन्देमें से ही उसका खर्च न चल सकें तो मैं मण्डलका होना निरर्थक मानता हूँ। मन्त्रीकी नियुक्ति हो गई है। इसके लिए मैंने श्री वालजी गोविन्दजी देसाईको पसन्द किया है। ये पहले गुजरात कॉलेजमें और फिर हिन्दू विश्वविद्यालयमें अध्यापकका काम करते थे। उन्हें २०० रुपये माहवार वेतन देना निश्चय हुआ है। इसके अलावा उनको मकानका किराया भी देना होगा। अभी तो वे आश्रममें रहते है इसलिए मकानका किराया नहीं दिया जाता है। लेकिन फिर कभी मकानके किरायेके २५ रुपये भी शायद उन्हें देने होंगे। कार्यालयके लिए अभी कोई दूसरा खर्च नहीं किया गया है। दूसरे कार्यकर्त्ताओंको भी रखना होगा। लेकिन जैसे-जैसे सभासद बढ़ते जायेंगे वैसे-वैसे इस काममें भी सुविधा होती जायेगी। मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि किसी भी हालतमें क्यों न हो १,४३,००० रुपये तो खर्च करना ही होगा, क्योंकि चर्मालय और डेरी धर्मभावसे चलाये बिना गोरक्षाको मैं असम्भव मानता हूँ।

मुझे आशा है कि गोसेवक इस महान कार्यमें अवश्य ही मदद करेंगे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १–१–१९२५