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भाषण : मुद्रामें

वही राजा और प्रजा दोनोंसे कहता हूँ। कारण कि मैं एक ऐसी शक्तिके प्रति उत्तरदायी हूँ जो मेरे पल-पलका हिसाब रखती है। इसलिए मुझे आपको भी यह बता देना चाहिए कि आपका व्यवहार कैसा था और कैसा है। आपने जो तार दिया था वह शिष्टताकी मर्यादाके बाहर था। मैंने तारका उत्तर लिखवाया, 'खिचड़ी' किसीने नहीं की है। केवल जो लोग अस्पृश्यताको पाप समझते हैं उन्हें तो अन्त्यजोंके साथ बैठना ही पड़ेगा। लेकिन जहाँ सारी जनता ही अस्पृश्यताको माननेवाली हो वहाँ मुझे बुलाना अनुचित कहा जायेगा। जहाँ अन्त्यजोंकी अवमानना ही होती हो वहाँ मुझे बुलाना मेरा अपमान करना है। यहाँ आकर मैने अन्त्यजोंके स्कूलकी बात सुनी। मुझे लगा कि चलो, मुन्द्रामें अन्त्यजोंकी सेवा तो की जाती है। लेकिन इस स्कूलके लिए मैं इब्राहीम प्रधान साहबको बधाई देता है। इसके लिए हिन्द जनता पात्र नहीं है। इसपर हिन्दुओंको लज्जित होना चाहिए। कोई मुसलमान मेरे लिये शिवालय बनवाये तो यह मेरे लिये शर्मकी ही बात होगी। स्कूलकी कातने और बुननेकी प्रवृत्ति देखकर मुझे खुशी हुई, लेकिन तुरन्त ही मेरे मनमें विचार आया कि मैं अथवा हिन्दू लोग इसके पुण्यके भागी कैसे बन सकते है? यदि मेरे बदले कोई मुसलमान गायत्री पढ़कर सुनाये तो इससे मेरा काम कैसे चल सकता है? मैं तो तभी सन्तुष्ट होऊँगा जब कोई ब्राह्मण आकर गायत्रीका उद्घोष करे। लेकिन यहाँ तो जो काम हिन्दुओंके करनेका था उसे खोजा लोग कर रहे हैं। यहाँ तो अन्त्यजोंकी किसीको कोई परवाह नहीं है। मेरे सामने ये जो अन्त्यज बैठे है, मेहमानोंके अलावा मुझे उनके बीच कोई अन्य अन्त्यजेतर बैठें दिखाई नहीं देते। जो लोग दिन-भर मेरे साथ घूमते रहे है वे भी अन्त्यजोंको छोड़कर भद्रजनोंके घेरेमें बैठें हुए है। आज अगर आप मेरे हृदयको चीरकर देखें तो आप पायेंगे कि वह रो रहा है। वह रो-रोकर कह रहा है, हे भगवान्! यह हिन्दू धर्म कैसा है, जहाँ अन्त्यजोंकी किसीको कोई परवाह नहीं। नगर-भरमें अन्त्यजोंकी सहायतार्थ आगे आनेवाला एक भी व्यक्ति नहीं है।

मतभेद और मतभेद

मतभेद सब जगह होता है। लेकिन मतभेदमें भी मर्यादा तो होनी ही चाहिए। जहाँ मतभेद इतना ज्यादा हो कि मिलने की कोई गुंजाइश ही न हो वहाँ मुझे बुलानेका सवाल ही नहीं उठता। मुझमें और अली भाइयोंमें बहुत निकटका सम्बन्ध है। किन्तु धर्मकी बातोंमें हम एक दूसरेके साथ बहस नहीं करते। अपने अहिंसाके धर्मको मैं उन्हें किस तरह समझा सकता हूँ? केवल अपने व्यवहारसे ही मैं इन्हें बता सकता हूँ कि मेरे धर्ममें क्या है? इससे आगे जाऊँ तो मैं अपनी मर्यादाका भंग करूँगा और वे भी मर्यादाका भंग करेंगे। इनके मनमें भले ही यह बात उठती हो कि मैं मुसलमान बन जाऊँ, लेकिन मेरे कानमें किसी भी दिन इन्होंने यह नहीं कहा कि तू मुसलमान बन जा, तू कलमा पढ़। यदि वे ऐसा करें तो मैं अपनी बच्चीको उनकी गोदमें कैसे बिठा सकता हूँ। कोई किसीसे धर्म छोड़ने की बात करके धर्मका अपमान नहीं कर सकता। मौलाना शौकत अलीका शरीर भारी है। नमाज पढ़नेके