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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उन्हें झुकना भी कठिन पड़ता है तथापि यात्रामें भी पटियापर बैठकर जैसे-जैसे नमाज पढ़ लेते हैं और इस तरह मुझे बताते हैं कि उनका धर्म कैसा है? मैं भी अपने व्यवहारसे उन्हें बताता है कि मेरा धर्म कैसा है। आइए, इस तरह हम एक दूसरेसे सीखें और अपने सम्बन्ध मधुर बनायें, लेकिन मुझे इस तरह बुलाकर सम्बन्ध मधुर नहीं बनाये जा सकते। आपका धर्म जुदा है, मेरा जुदा है। हम एक दूसरेके प्रति प्रेमभाव रखें लेकिन हमारे बीच में मेल नहीं हो सकता। हमारे बीच छोटी-मोटी खाड़ी नहीं बल्कि विशाल समुद्र पड़ा हुआ है। फलतः आप मुझे इस तरहके स्वागतको स्वीकार करने के लिए बुलायें इसकी अपेक्षा मेरे विचार सुनने के लिए आप साबरमती आयें, यह ज्यादा उचित है। मुझे तो जिसे अन्त्यज-सेवा प्रिय हो, जिसे अन्त्यजसेवाके सम्बन्धमें कुछ जानना हो वे ही बुलायें। लेकिन जो लोग पल-भरके लिए भी अन्त्यजोंके पास नहीं बैठ सकते, वे किसलिए बुलायें? आज तो आप जिस धर्मका पालन कर रहे है उस धर्मको देखकर मेरे मनमें होता है कि उस धर्मका नाश हो। जैसे बोअर युद्धके समय एक अंग्रेज प्रार्थना किया करता था कि मेरा देश हार जाये, जैसे भीष्म कौरवोंके साथ थे लेकिन उनका आशीर्वाद पाण्डवोंके लिए था,—जैसे कृष्ण भगवानका आशीर्वाद केवल पाण्डवोंके लिए ही था वैसे ही ईश्वरके निकट मेरी यही प्रार्थना रही है कि यदि हिन्दू धर्म ऐसा ही है तो उसका नाश हो जाये। मैने तो अपनी पत्नीसे कहा कि यदि तेरा और मेरा धर्म अलग-अलग हो तो हम अलग-अलग कुटिया बनाकर रहेंगे। यह उचित होगा; लेकिन तू मुझसे यह आग्रह न करेगी कि आप लक्ष्मीको अपने साथ न रखे और मैं भी आग्रह नहीं करूँगा कि तू लक्ष्मीको[१] अपने साथ रख। यदि आप सभी लोग अन्त्यजोंको अस्पृश्य मानते हों तो आपका यह धर्म था कि आप दूर बैठें-बैठें मेरे लेखोंको पढ़कर मेरे विचारोंको जानने का प्रयत्न करते; दूरसे ही मेरे दर्शन करते। मैं तो हिन्दुस्तानका गुलाम हूँ। मैं अपने धर्मकी सेवा करते हुए, इस धर्मका पालन करते हुए अकेला भी खड़ा रह सकता हूँ। लेकिन अपना धर्म छोड़कर फिर चाहे उसमें सारी दुनिया भी मेरा साथ दे मैं जीवित नहीं रह सकता। इसलिए आपका धर्म यह था कि आप मुझे स्पष्ट रूपसे कह देते कि "तुम्हें यहाँ आनेकी ज़रूरत नहीं है। अमेरिकाके लोग तुम्हें 'महात्मा माने तो माने'। आप मुझे 'विश्ववैद्य' कहते हैं। इसका अर्थ क्या है? मुझमें यदि कुछ भी वन्दनीय है तो यह मेरा सत्याग्रह है। सत्याग्रह यानी अंग्रेजोंके विरुद्ध विद्रोह नहीं। सत्याग्रह यानी धर्मकी वह अनुभूति जो १९८७ में मुझमें उत्पन्न हुई थी और जो अबतक बढ़ती रही है।" १९८७ में मेरी जातिके लोगोंने विलायत जानेपर मुझे जातिसे बाहर निकालनेकी धमकी दी थी। मैंने उनसे कहा कि आप भले ही मुझे जातिसे बहिष्कृत कर दें, मैं तो विलायत जाऊँगा। मेरा सत्याग्रह तबसे शुरू हुआ। सरकारके साथ सत्याग्रह तो मेरे सत्याग्रहका अंश-मात्र है। मेरा पहला सत्याग्रह तो जातिके पंचोंके खिलाफ था जिन्हें मैं पितातुल्य मानता था। इस सत्याग्रहको समझनेकी खातिर आप मुझे बुला सकते थे। मुझमें जो मूल्यवान है वह यह सत्याग्रह

 
  1. एक अन्तज्य वाला।