पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/४५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४२८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सीखिये। मेरे पास सीखनेकी चीज मेरा लड़नेका बल नहीं, मेरा प्रेम है। लड़नेका बल तो मेरे जीवनका अंश-मात्र है। यह बल भी मेरे सत्यसे ही निःसृत हुआ है, मेरी दयासे, मेरे प्रेमसे उत्पन्न हुआ है। इस प्रेमके बिना मेरी सारी लड़ाई और लड़नेका प्रयास व्यर्थ है। इस प्रेमको जीवनमें उतारनेवाला व्यक्ति ही अन्त्यजोंका और गायका आशीर्वाद ले सकेगा। आप अपने नेत्रपटल खोलिए। उस परदेको हटाइये जिसने आपके हृदयको ढँक रखा है। कुछ तो चेतिए। ईश्वर आपका कल्याण करे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ८–११–१९२५
 

२२६. कच्छके संस्मरण—१

२ नवम्बर, १९२५

आशाका हवाई किला

कच्छ आने के लिए स्टीमरपर सवार होने के पहले ही मैंने सहज भावसे यह कहा था कि मुझे यह खबर नहीं है कि मैं कच्छ किसलिए जा रहा हूँ। और अब इस लम्बे सफरको पूरा होने में केवल एक ही दिन बाकी है, फिर भी मैं यही सोचता हूँ कि मैं यहाँ किसलिए आया था? हरएक जगह जाने के पहले मैं यह विचार कर लेता हूँ कि मुझे वहाँ क्या करना होगा और मुझे वहाँसे क्या आशा रखनी चाहिए। कच्छके बारेमें तो मुझे कुछ भी ख़बर न थी। सिर्फ कुछ कच्छी मित्रोंके प्रेम और आग्रहके वश होकर ही मैं कच्छ आने के लिए तैयार हुआ था। 'कुछ' शब्दका मैंने जानबूझकर प्रयोग किया है। क्योंकि मैंने यहाँ आकर देखा कि कुछ लोगोंने तो यह भी कहा कि मुझ कच्छ बुलान के पहले उनसे कुछ भी पूछा नहीं गया था; उन्हें तो आखिरकार लोगोंका साथ ही देना पड़ा था। मैंने तो बिना किसी आधारके ही आशाके हवाई महल बनाये थे। इसलिए अब ऐसा मालम होता है कि मानो मेरे चारों ओर निराशा ही निराशा है। लेकिन 'गीता' जिसकी मार्गदर्शक हो उसे कभी निराश नहीं होना पड़ता है; अथवा यों कहें कि उसे कभी आशा रखनी ही नहीं चाहिए। इस बार मैंने आशाका हवाई किला बना लिया था, इसलिए 'गीता' का गायक हँसता हुआ लेकिन लाल-लाल आँखें दिखाकर यह कह रहा है कि "तू भूला क्यों? अब अपनी भूल की सजा भी भोग। आशा रखी थी इसलिए अब कटु निराशाका भी अनुभव कर। तुझे इस बातका अनुभव तो है ही कि निराशासे आरम्भ करनेपर उसके फल बड़े मधुर होते हैं। अब फिर भूल न करना। निराशा भी मनकी एक तरंग है। इसलिए जो सावधान रहता है उसे कभी निराशा नहीं होती; क्योंकि वह आशाको मनमें कभी स्थान नहीं देता।"

यह तो हुई तत्वज्ञानकी, अध्यात्मकी बात। आत्माके आनन्दके लिए इसकी आवश्यकता थी। अब इतिहास कहता हूँ।