पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/४६९

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टिप्पणियाँ
  1. गोरक्षा कार्यक्रमके अंगके रूपमें चमड़ा पकानेके कारखानोंके स्थानकी जाँचके लिए आवश्यक है कि ऐसा एक कारखाना हाथमें ले लिया जाये और फिर उसका उपयोग मुनाफा कमानेके लिए नहीं, बल्कि विशुद्ध गोरक्षाके लिए किया जाये। इसके लिए ऐसे किसी मौजूदा कारखाने में लगाने के लिए १, २५, ००० रुपये की जरूरत है। मुझे जो जानकारी मिली है, उससे प्रकट होता है कि ज्यादातर कारखानोंमें वध किये गये मवेशियोंका चमड़ा ही खरीदा और पकाया जाता है और मरे हुए मवेशियोंकी खालका ज्यादातर तो भाग भारत विदेशोंको भेजता है। इस वस्तुस्थितिके निराकरणका उपाय यही है कि गो-प्रेमी लोग चलियोंको अपने हाथमें लें और अपनी परोपकार वृत्तिके द्वारा चमड़ेको व्यापारिक स्पर्धाकी वस्तु बननेसे रोकें।
  2. इस बातका पता लगाने के लिए कि मुनाफा कमानेके लिए तो नहीं, किन्तु साथ ही जिनमें लाभ न हो तो अन्ततः नुकसान भी न हो, ऐसी गौशालाएँ बड़े पैमानेपर चलाना कहाँतक सम्भव है, कुछ प्रारंभिक अनुसन्धान भी किया जाना चाहिए। इस प्रारम्भिक कार्य के लिए बारह महीने के भीतर कमसे-कम दस हज़ार रुपये ख़र्च करने होंगे। इस रुपयेसे दुग्धशाला-विशेषज्ञ रखे जायें और ऐसे उपयुक्त स्थान ढूँढ़े जायें जहाँ हजारों पशु रखे जा सकें। जबतक हम इस कामको इस तरह अपने नियन्त्रण मैं नहीं लेते तबतक हमें मवेशियोंके वधसे होनेवाली भयंकर हानि सहते ही रहनी पड़ेगी। हम इन पशओंको सिर्फ या तो इनका ठीक उपयोग न करने या अपने अज्ञानके कारण ऐसा बना डालते है जिससे ये लाभदायक नहीं रह जाते। इसीलिए भारतके विभिन्न नगरोंमें रहनेवाले ग्वाले इन्हें वध कर दिये जानेके लिए बेच देते हैं। अगर पशु आर्थिक दृष्टिसे लाभप्रद न रहें तो उन्हें किसी तरह कसाईके छुरेसे नहीं बचाया जा सकता।
  3. छात्रोंको चमड़ा कमाने और दुग्धशालाका काम सीखनेके निमित्त छात्रवत्तियाँ दी जानी चाहिए। इसके लिए ५००० रुपया एक वर्ष के लिए जरूरी है।
  4. पशु-पालन, दुग्ध-व्यवसाय, चर्म-शोधन आदिसे सम्बन्धित पुस्तकोंके लिए ३००० रुपयेकी जरूरत है।

इस प्रकार १, २८, ००० रुपयेकी रकम पूंजीगत खर्च के लिए और १५,००० रुपयेकी रकम अनुसन्धान और तैयारीके लिए आवश्यक है। मैं यहाँ चालू खर्चको छोड़ देता है। यह खर्च अखिल भारतीय गोरक्षा संघकी सदस्यतासे होनेवाली सा आयमें से निकालना होगा। यदि संघ अपना खर्च नहीं निकाल सकता तो वह भंग कर दिया जाना चाहिए। मुझे जो अधिकार दिया गया है, उसके अन्तर्गत मैंने एक वैतनिक मन्त्रीको सेवाएँ प्राप्त कर ली हैं। जो काम करना है, उसके लिए श्री वा॰ गो॰ देसाईको चुना गया है। मेरे सामने जिन व्यक्तियोंके नाम थे, उनमें सबसे अधिक उपयुक्त मुझे वे ही जान पड़े। वे अंग्रेजी और संस्कृतके विद्वान हैं। उन्हें पशुओंसे प्रेम है और गोरक्षामें उनका सदासे विश्वास रहा है। वे चाहते तो कोई और काम भी कर सकते थे; किन्तु उन्होंने गोरक्षाका काम ही चुना है, और मुझे आशा है कि उनका यह निर्णय अन्तिम होगा और वे इस काममें जीवन-भर लगे रहेंगे।