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भाषण : ईसाईयोंकी सभामें

युवकोंने बोअर यद्ध तथा जल विद्रोहके अवसरपर सरकारको अपनी सेवाएँ अपित की थीं। उनमें से कुछका मेरे अपने घरमें पालन-पोषण हआ था। इनमें से कमसे-कम दो बादमें बैरिस्टर बने।[१] इस तरह आप समझ सकते है कि भारतीय ईसाई समाजके साथ मेरे सम्बन्ध कितने धनिष्ठ रहे हैं। मैं नहीं समझता कि उस देशमें एक भी भारतीय ईसाई है, जिसे मैं नहीं जानता और जो मुझे नहीं जानता। इसलिए आज "मानव-भ्रातृत्व" पर भाषण देनेके लिए आपके सामने उपस्थित होनेका अवसर पाकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है।

हमारे इन देश-भाइयोंको जैसी निर्योग्यताएँ झेलनी पड़ती है, वैसी निर्योग्यताओंका भार सहन करनेवाले लोगोंके लिए यह समझना अत्यन्त कठिन है कि "मानव भ्रातृत्व" जैसी भी कोई वस्तु हो सकती है। यदि आप समाचारपत्र पढ़ते हैं और भारतके बाहर चारों ओर जो-कुछ हो रहा है उसमें अगर आप कोई दिलचस्पी रखते हैं तो आप शायद जानते होंगे कि दक्षिण आफ्रिकामें वहाँकी सरकार भारतीयोंको निकालकर बाहर करनेकी कोशिश कर रही है या जैसा कि यहाँ अंग्रजोंके एक समाचारपत्रने लिखा है, उन्हें भूखों मारकर देशसे बाहर निकलनेपर मजबूर किया जा रहा है; और जिनको इस तरह भूखों मारनेकी योजना की जा रही है उनमें कई वे नौजवान भी शामिल हैं, जिनकी अभी मैंने चर्चा की। यह बात अन्तमें होकर रहेगी अथवा नहीं, और भारत सरकार इसकी स्वीकृति देगी या इसे सहन कर लेगी यह देखना अभी शेष है। किन्तु जिस सन्दर्भमें मैं आपके सामने इस बातका उल्लेख कर रहा हूँ वह, जैसा कि मैंने अभी आपको बताया, यह है कि इस प्रकारके लोगोंके लिए भ्रातृभावका अर्थ समझ सकना बहुत कठिन है; और फिर भी मेरे आपके सामने भ्रातृभावपर इस तरह बोलने का कारण यह है कि तनाव तथा कठिनाईके ऐसे समयमें ही मनुष्यकी भ्रातृत्व भावनाकी कसौटी होती है।

मुझे अकसर अपनी प्रशंसामें बहुत-सी बातें सुननेको मिलती हैं। लेकिन वे मुझपर कोई प्रभाव डाले बिना मेरे मनसे इस तरह निकल जाती हैं जैसे बत्तखकी पीठपर से पानी। लेकिन, महोदय, आपने इस समय मेरी जो प्रशंसा की है, मेरा जी उसे स्वीकार करनेको होता है। आपका विचार है कि मानव-भ्रातृत्वपर बोलनेका यदि किसी व्यक्तिको अधिकार है तो, कमसे-कम, मुझे वह अधिकार मिलना चाहिए; मैं भी यही सोचता हूँ। मैंने बहुत-से अवसरोंपर अपनेको परखकर यह जाननेकी कोशिश की है कि क्या मेरे लिए अपने उत्पीड़कके प्रति घृणा करना—मैं प्रेम करना नहीं कह रहा हूँ-सम्भव है। मुझे अत्यन्त ईमानदारीके साथ किन्तु पूरी नम्रतासे यह कहना होगा कि मुझे इसमें सफलता नहीं मिली; मुझे ऐसा एक भी अवसर याद नहीं जबकि मुझे किसी भी व्यक्तिके प्रति घृणाका अनुभव हुआ हो। मैं ऐसा कैसे बना, मैं नहीं जानता। मैंने तो जीवन-भर जैसा आचरण किया है, वही आपको बता रहा हूँ। इसलिए यह वास्तवमें शब्दशः सच है कि यदि कोई ऐसा व्यक्ति है, जिसे कि मानव-भ्रातृत्वपर बोलनेका अधिकार है तो कमसे-कम मुझे वह अधिकार अवश्य है।

  1. एल॰ डब्ल्यू॰ रिच, जेम्स गौंडफ्रे और जार्ज गौंडफ्रे; देखिए, खण्ड ५ पृष्ठ ३१६।