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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

१९१५ में वे जब भारत आये थे, तभीसे मैं उन्हें काफी करीबसे जानता हूँ। उनको २०० रुपये मासिक वेतन दिया जायेगा। फिलहाल उनके रहने की व्यवस्था सत्याग्रहाश्रममें की गई है, जहाँ उन्हें कोई किराया नहीं देना है। किन्तु मकान किरायेके रूपमें पच्चीस रुपये और देने की ज़रूरत हो सकती है। यदि इस योजनाके लिए अनुदान मिले तो वैतनिक कर्मचारियोंकी संख्या बढ़ाना जरूरी होगा। इस समय तो दफ्तरमें एक चपरासी भी नहीं रखा गया है। जनता कैसा उत्साह दिखाती है, इसी बातपर कामका विस्तार निर्भर है। अपने कच्छके दौरेमें मैं अपने कच्छी मित्रोंके सामने इस योजनाकी चर्चा करता रहा हूँ और वे मुझे ३००० रुपयेसे ज्यादा रकम दे चुके है। में एक खोजा मित्रसे मिले ५०० रुपये भी शामिल हैं। फिर भी अनुदान और सदस्यता, दोनोंकी बातोंमें लोगोंको अधिक उत्साह दिखाना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ५–११–१९२५
 

२३०. अहमदाबादमें सफाई

डा॰ हरिप्रसाद ब्रजराय देसाईने एक पत्र लिखा है। हम उसे नीचे अविकल प्रकाशित कर रहे हैं।[१]

डा॰ हरिप्रसादने यह पत्र २ अक्तूबरको शुरू किया था और ४ को पूरा किया। 'पुनश्चः' वाला अंश उसके बाद शायद उसी तारीखको जोड़ा गया है। यह पत्र नहीं, एक छोटी-मोटी पुस्तिका है। किन्तु यह विनोद और शिष्ट व्यंगसे ओत-प्रोत है और इसकी शैली इतनी अच्छी है कि मुझे विश्वास है कि पाठक इसे वैसी ही दिलचस्पीसे पढ़ेंगे जैसी दिलचस्पीसे मैंने पढ़ा है। डाक्टर हरिप्रसाद हमारी गन्दगी और मलिनताका चित्र अत्यन्त दिलचस्प ढंगसे ही नहीं, बल्कि पूर्ण स्पष्टताके साथ प्रस्तुत करने में सफल हए हैं। मैं चाहता है कि वे अपने प्रयत्नमें पूरी तरह सफल हों। किन्तु यह तो केवल प्रशंसा करना ही हुआ। मेरी हादिक इच्छा तो यह थी कि में फावड़ा, झाडू, चूनेकी बालटी और कुची लेकर उनके साथ होता। किन्तु जिस शहरमें वल्लभभाई-जैसा भंगियोंका राजा रहता है, वहाँ मेरे करने के लिए बहत ही थोड़ा काम हो सकता है। इसलिए अहमदाबादमें जो-कुछ हो रहा है, उसको मैं एक प्रेक्षकके रूपमें दिलचस्पीसे देख रहा हूँ और यही कामना कर रहा हूँ कि अहमदाबादकी नगरपालिका सफाई, संगठन, प्रारम्भिक शिक्षा तथा सस्ता और स्वच्छ दूध देने की

 
  1. पत्थर यहाँ नहीं दिया जा रहा है। यंग इंडिया २९–१०–१९२५ और ५–११–१९२५ के अंकमे इसका अंग्रेजी अनुवाद भी प्रकाशित किया गया था। पत्रमें अहमदाबादके विभिन्न छोटे-बड़े मोहल्लोंकी गन्दगीका आंखों देखा हूबहू चित्रण था। नगरकी इस दुर्दशामें किस धार्मिक सम्प्रदायका कितना हाथ है, यहाँभी पत्रमें वर्णित था। नगरकी गन्दगी दूर करने के लिए छेड़े गये अभियानका वर्णन करनेके बाद लेखकने गांधीजीके समर्थनकी प्रर्थना की थी।