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कवि-गुरु और चरखा

प्यारी सीता—चरखेके पीछे भटकता फिरता हूँ और उसे दैत्य दशाननसे—जापान, मैन्चेस्टर, पेरिस इत्यादिसे—मुक्ति दिलानेका प्रयत्न करता हूँ। कवि नया आविष्कार करता है। वह सृष्टि करता है, उसे मिटाता है और फिर सृष्टि करता है और मैं तो केवल शोधक हूँ और इसलिए एक वस्तुका शोध कर लेनेपर मुझे तो उसोको पकड़कर बैठे रहता है। कवि दिन-प्रतिदिन दुनियाके सामने नई और मोहक चीजें रखता है। मैं तो सिर्फ पुरानी, बल्कि जीर्ण-शीर्ण वस्तुओंमें छिपी हुई सम्भावनाओंको ही दिखा सकता हूँ। नई-नई और चमत्कृत कर देने वाली चीजें पेश करनेवाले जादूगरको संसारमें बड़ी आसानीसे गौरवका स्थान प्राप्त हो जाता है। किन्तु मुझे तो अपनी जीर्ण-शीर्ण चीजोंके लिए इस विस्तृत संसारमें एक छोटा-सा कोना हासिल करने के लिए भी घोर परिश्रम करना है। इसलिए हम दोनोंमें कोई स्पर्धा ही नहीं है। लेकिन मैं सम्पूर्ण नम्रताके साथ इतना कह दूँ कि हमारे कार्य और व्यापार एक-दूसरेके पूरक है।

सच तो यह है कि कवि-गुरुकी आलोचना कवि सुलभ स्वच्छन्दताका एक नमूना है; और इसलिए यदि कोई उसे शब्दशः पकड़कर चलेगा तो किसी भी क्षण उसकी स्थिति बड़ी ही अटपटी बन सकती है। एक प्राचीन कविने कहा है कि अपने तमाम ठाठ-बाटके साथ भी सॉलोमन[१] किसी पुष्पकी शोभाकी समता नहीं कर सकता। यहाँ कविने स्पष्टतः सॉलोमनके कृत्रिम ठाठ-बाट और अनेक सत्कर्मोक बावजूद उसके पापरत रहनेकी तुलनामें पुष्पकी प्राकृतिक छबि और निर्दोषिताकी ओर संकेत किया है या फिर इसी वाक्यमें निहित काव्यात्मक स्वच्छन्दताको देखिए : "सुईके छेदमें से ऊँटका निकल जाना धनवान मनुष्यके स्वर्गके साम्राज्यमें प्रवेश कर सकनेसे कहीं आसान है।" हम यह जानते हैं कि सुईके छेदमें से कभी भी कोई ऊँट नहीं निकला है और हम यह भी जानते हैं कि जनक-जैसे धनवान व्यक्तियोंने स्वर्गके साम्राज्य में प्रवेश किया है। अथवा आदमीके दाँतोंको सुन्दर उपमाको ही लीजिए। उसकी तुलना अनारके दानोंके साथ की जाती है। इसके शब्दार्थके पीछे भागनेवाली मूढ़ स्त्रियों को अपने दाँतोंकी सुन्दरताको बिगाड़ते बल्कि उन्हें नुकसान पहुँचाते भी देखा गया है। चित्रकार और कवियोंको सच्चा चित्र प्रस्तुत करने के लिए कुछ अतिरंजनासे काम लेना पड़ता है। इसलिए जो लोग चरखेके खिलाफ कवि-गुरुकी कही गई बातोंका शब्दशः अर्थ करते हैं, वे उनके प्रति अन्याय करते है और स्वयं अपना भी अपकार करते हैं।

कवि-गुरु 'यंग इंडिया' नहीं पढ़ते हैं, न उनसे इसे पढ़नेकी आशा की जा सकती है। उन्हें इसकी कोई ज़रूरत भी नहीं है। इस आन्दोलनके बारे में वे जो-कुछ भी जानते हैं, वह सब उन्होंने सिर्फ इधर-उधर की बातचीतसे ही जाना है और इसलिए उन्होंने जिस बातको चरखा-धर्मको अतिशयता मान लिया है, उसको भर्त्सना की है।

उदाहरणके लिए वे समझते हैं कि मैं चाहता हूँ, सब लोग अपने और सब काम छोड़कर दिन-रात काता ही करें। अर्थात् मैं यह चाहता हूँ कि कवि अपनी

 
  1. इजरायलका प्रसिद्ध राजा जो अपनी बुद्धिमताके लिए विख्यात् था।