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उड़ीसामें संकट

भक्ति-भाव है—और वे जानते हैं कि मतभेदों के बावजूद भी उनके प्रति मेरा भक्तिभाव है—तो मेरे लिए यह सम्भव नहीं कि मैं उस व्यक्तिके बड़प्पनको घटाकर दिखानेका प्रयत्न करूँ, जिसके कारण बंगालका वह महान् सुधारवादी आन्दोलन सम्भव हो सका था, और जिसकी एक सर्वोत्तम देन कवि-गुरु स्वयं हैं।[१]

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ५–११–१९२५
 

२३२. उड़ीसामें संकट

मुझे श्री एन्ड्रयूजका एक तार मिला है। उसमें उन्होंने सूचित किया है कि उड़ीसामें मवेशी और मनुष्य, दोनों ही भयंकर संकटमें हैं। उन्होंने मुझसे अनुरोध किया है कि मवेशियोंके प्राण बचानेके लिए मैं १०,००० रुपयको व्यवस्था करूँ और उन्होंने एक पत्रमें लिखा है कि वहाँ स्त्रियोंके लिए खद्दर चाहिए; क्योंकि वे प्रायः बिना कपड़ेके हैं। मैं एक ऐसा विश्वस्त एजेंट (अभिकर्त्ता) ढूँढ़ने का प्रयत्न कर रहा हूँ, जो इस कार्यको संभाल ले। फिलहाल मेरा धनके लिए जनतासे अपील करनेका कोई विचार नहीं है, क्योंकि मलाबार सहायता कोषमें 'यंग इंडिया' और 'नवजीवन' के पाठकोंने जो चन्दा दिया था, उसकी एक बड़ी रकम अभी बची है और वह खर्च नहीं हुई है। चूंकि मैं यह पत्र कच्छसे लिख रहा हूँ, इसलिए मैं नहीं जानता कि ठीक-ठीक कितनी रकम अभी सुलभ है। किन्तु दान देनेवालोंकी स्वीकृतिके बिना मुझे उड़ीसाको सहायता पहुँचानेके लिए मलाबार सहायता कोषमें से कुछ भी खर्च करनेका कोई अधिकार नहीं है। इसलिए मैं मलाबार सहायता कोषमें चन्दा देनेवालोंसे अनुरोध करता हूँ कि यदि उन्हें मेरा सुझाव पसन्द हो तो वे अपने चन्देके शेष धनको उड़ीसाके इस संकटमें राहत पहुँचानेके लिए उपयोगमें लानेकी अनुमति दें। जो लोग मुझे अपनी अनुमति भेजें, उनसे प्रार्थना है कि वे दी हुई मूल रकमका उल्लेख भी कर दें, जिससे मैं उस रकमको ठीक-ठीक जाँच कर सकूँ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ५–११–१९२५
 
  1. इस लेख पर कई समकालीन पत्र-पत्रिकाओंने, जैसे इंडियन डेली मेल', ट्रिब्यून और माॅडर्न रिव्यू (दिसम्बर, १९२५, पृष्ठ ७२५–८) ने टिप्पणियाँ लिखीं। गांधीजीने एक पत्र-लेखकको उत्तर देते हुए टिप्पणियोंका जवाब दिया था; देखिए खण्ड २९।