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२३३. ये अटपटे सवाल

'यंग इंडिया' के कुछ पाठक मुझे काफी परेशान करते हैं। वे अक्सर बड़े अटपटे सवाल पूछ बैठते है। लेकिन चूंकि उन्हें इसमें आनन्द आता है, इसलिए चाहे वे प्रश्न कितने भी पशोपेश में डालनेवाले क्यों न हों, मुझे इस असुविधाको बर्दाश्त करके उनके प्रश्नोंके उत्तर देने ही चाहिए। एक पत्र-लेखक महाशय अपना पहला वार इस प्रकार करते हैं :

पहली अक्तूबरके 'यंग इंडिया' में प्रकाशित चरखा-संघको कार्यकारिणी परिषद्के सदस्योंको नामावलीमें आपके नामके आगे 'महात्मा' शब्द लिखनेके लिए कौन जिम्मेदार है?

पत्र-लेखक सज्जन सच माने कि चरखा-संघके सदस्योंकी सूचीमें मेरे नामके आगे महात्मा शब्द जोड़ दिये जाने के पीछे इस पत्रके सम्पादकका कोई हाथ नहीं है। जिन्होंने चरखा संघका संविधान पास किया, वे ही इसके लिए जिम्मेदार है। यदि मैंने उसके विरुद्ध सत्याग्रह किया होता तो वह शब्द वहाँ न रहता, लेकिन मैंने इस गुनाहको इतना गम्भीर नहीं माना कि उसके लिए सत्याग्रह-जैसे जबर्दस्त हथियारका उपयोग करता। जबतक कोई भारी अनर्थ ही न हो जाये, तबतक तो यह आपत्तिजनक शब्द मेरे नामके साथ हमेशा लगा ही रहेगा; और जिस प्रकार मैं उस शब्दको सहन करता हूँ, उसी प्रकार धैर्यवान आलोचकोंको भी सहन करना होगा।

आप कहते हैं कि आपके साथ काम करनेवाले अन्य लोगोंकी तरह ही आप भी उन मित्रोंकी दानशीलतापर जीवन-निर्वाह करते हैं जो सत्याग्रहाश्रमका खर्च उठाते हैं। क्या आप यह उचित मानते हैं कि जिस संस्थामें तन्दुरुस्त और काम करनेकी पूरी क्षमता रखनेवाले लोग हों, वह संस्था मित्रोंकी दानशीलतापर चले?

पत्र-लेखक सज्जन 'दानशीलता' के शब्दार्थपर बहुत ज्यादा जोर दे रहे हैं। इस संस्थाका हरएक सदस्य, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, इसके कार्यमें अपने शरीर और बुद्धि दोनोंका पुरा उपयोग करता है। लेकिन फिर भी इस संस्थाके बारेमें ऐसा कहा जा सकता है कि वह मित्रोंकी 'दानशीलता' पर चलती है, क्योंकि वे मित्र जो-कुछ भी उसे दानमें देते हैं उसके बदलेमें उन्हें तो कुछ मिलता नहीं। संस्थाके लोगोंकी मेहनतका फल तो राष्ट्रको मिलता है।

जिसे टॉल्स्टाय "रोटीके लिए मेहनत करना" कहते हैं, उसके बारेमें आपका क्या विचार है? क्या आप सचमुच शारीरिक मेहनत करके जीविकोपार्जन करते हैं?

सच पूछा जाये तो 'रोटीके लिए मेहनत करना', ये शब्द टॉल्स्टायके नहीं है। उन्होंने एक दूसरे रूसी लेखक बॉन्डरिकसे इन्हें ग्रहण किया था, और उसका अर्थ यह है कि हरएकको इतनी शारीरिक मेहनत जरूर करनी चाहिए, जिससे वह रोटी पानेका सच्चा अधिकारी बन सके। इसलिए अगर आजीविकाका व्यापक अर्थ