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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी अगर इस पतनकारी शस्त्रास्त्र अधिनियमके खिलाफ, जिसे मैं भारतके साथ ब्रिटिश सरकार द्वारा किये गये जघन्यतम अपराधोंमें से मानता हूँ, कोई आन्दोलन चलाया जाये, तो मैं खुशी-खुशी उसमें शामिल होऊँगा। मैं प्रतिहिंसामें विश्वास नहीं करता, लेकिन चार साल पूर्व बेतियाके निकटके ग्रामवासियोंसे मुझे यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं हुई कि आप लोग अहिंसाके बारेमें कुछ भी नहीं जानते और शस्त्र-बलसे अपनी स्त्रियों तथा सम्पत्तिकी रक्षा करनेसे जी चुराकर आपने कायरताका परिचय दिया है। और शायद पत्र-लेखक को भी मालूम होगा कि अभी हालमें भी मैंने हिन्दुओंसे बेहिचक कहा है कि अगर आपको पूर्ण अहिंसामें विश्वास न हो और आप उसका पालन न कर सकते हों, और तब भी अगर आप अपनी औरतपर हाथ डालनेवाले दुष्टका अपने शरीर बलसे मुकाबला नहीं करते तो यह अपने धर्म और मानवताके प्रति एक अपराध होगा। और इन तमाम सलाहों और अपने पिछले आचरणको मैं न केवल अपने इस कथनसे कि मैं पूर्ण अहिंसामें विश्वास रखता हूँ, संगत मानता हूँ, बल्कि अपने इस विश्वासका एक सीधा परिणाम भी मानता हूँ। उस उदात्त सिद्धान्तको मुँहसे कह देना आसान है; किन्तु संघर्षों, संक्षोभों और तरह-तरहके मनोविकारोंसे भरी इस दुनियामें उसे समझ पाना और उसके अनुसार चल पाना ऐसा काम है, जिसकी कठिनाईकी प्रतीति मुझे हर रोज अधिकाधिक होती जा रही है। किन्तु इसके बावजूद, मेरा यह विश्वास भी उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है कि इसके बिना जीवनका कोई अर्थ नहीं है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ५–११–१९२५
 

२३४. जातिगत श्रेष्ठताकी बीमारी

मैमनसिंहमें वहाँकी जिला वैश्य सभाने मुझे एक कागज दिया था। उसमें जो लिखा है वह काफी ध्यान देने लायक बात है और उसमें सबकी रुचि होनी चाहिए। वह निम्न प्रकार है :[१]

सम्भव है कि इन बातोंमें कुछ अतिशयोक्ति हो, लेकिन मैंने यह दिखाने के लिए ही यह पत्र यहाँ दिया है कि ऊँच-नीचको भावनाकी बीमारी हिन्दू धर्मकी जड़ोंमें कितनी गहरी उतर चुकी है। यद्यपि खुद इस निवेदनको लिखनेवाले लोगोंको भी उनसे ऊँचे कहे जानेवाले लोग हेय दृष्टिसे देखते हैं, फिर भी इन्होंने उन लोगोंसे, जो उनसे भी अधिक तिरस्कृत हैं, अपने-आपको श्रेष्ठ और अलग बतानेमें तनिक भी संकोच नहीं किया है। इस प्रकार तिरस्कृत "अस्पृश्यों" में भी ऊँच-नीचका भेदभाव भरा हुआ है। कच्छकी यात्रामें भी मैंने सब जगह यह देखा कि हिन्दुस्तानके दूसरे भागोंकी तरह यहाँ भी अस्पृश्योंमें भी ऊँची-नीची जातियाँ हैं और ऊँची

 
  1. देखिए परिशिष्ट ६।