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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कहते हैं, वे भी समाजके श्रमिकोंके रूपमें उतने ही अधिकारों और सुविधाओंके पात्र है, जितनेके शूद्र। मेरे लेखे तो वर्णाश्रम-धर्म समाज के अधिकसे-अधिक कल्याणके लिए सोची गई व्यवस्था है। और आज हम जो-कुछ देख रहे हैं, वह उस व्यवस्थाके असली रूपकी विडम्बना और उपहास-मात्र है। और अगर वर्णाश्रम धर्मको जीवित रखना है, तो हिन्दुओंका कर्त्तव्य है कि वे उसे इस विडम्बनाकी स्थितिसे मुक्त करके, उसके मूल गौरवपर उसे पुन : प्रतिष्ठित करें।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ५–११–१९२५
 

२३५. भेंट : अहमदाबादमें पत्र-प्रतिनिधियोंसे

६ नवम्बर, १९२५ से पूर्व

श्री गांधी कच्छका अपना दौरा पूरा करके यहाँ वापिस आ गये हैं। ऐसा लगता है कि उनका स्वास्थ्य काफी गिर गया है।

अपने स्वास्थ्यके विषयमें पूछे जानेपर उन्होंने कहा :

मेरे स्वास्थ्यके बारेमें चिन्ता करनेका कोई कारण नहीं है। यह ठीक है कि बंगालका दौरा करनेके बाद मुझे जो कमजोरी आई थी उसकी तुलनामें इस बार मैं ज्यादा कमजोर हुआ हूँ। कारण यह है कि कच्छमें सड़कें बहुत खराब थीं और मुझे लगातार यात्रा करनी पड़ी। मैं बहुत थक गया हूँ और मेरा वजन करीब आठ पौंड कम हो गया है। लेकिन मैं जानता हूँ कि आश्रममें मुझे जो आराम मिलेगा, उससे मेरी खोई हुई शक्ति और वजनकी शीघ्र ही पूर्त्ति हो जायेगी। मैं एक बात साफ कर देना चाहता हूँ—कच्छके दौरेमें जो कठिनाइयाँ सहनी पड़ीं, उनका दोष किसीको नहीं दिया जा सकता। हम सब लोगोंका खयाल तो यह था कि इस दौरेमें मुझे लगातार परिश्रम करनेकी बाध्यतासे कुछ राहत मिलेगी। हमारे आसपास वहाँ जो लोग थे उन्होंने मुझे आराम देनेके प्रयत्नमें कोई कसर नहीं रखी। किन्तु बैलगाड़ियोंमें ऊबड़-खाबड़ सड़कोंपर यात्रा करने से मेरे जर्जर शरीरपर कितना जोर पड़ेगा, इसकी कल्पना किसीको नहीं थी।

कानपुर-कांग्रेसमें वे क्या करेंगे, यह पूछनेपर महात्माजीने कहा :

कांग्रेसमें मैं क्या करूँगा—इसके बारेमें मैंने कुछ भी नहीं सोचा है। अलबत्ता, जहाँ सम्भव होगा वहाँ अपने वचनके अनुसार में स्वराज्यवादियोंकी सहायता करूँगा। किन्तु कांग्रेसके कार्यक्रमकी रचना तो पण्डित मोतीलाल नेहरूसे सलाह-मशविरा करके श्रीमती सरोजिनी देवी ही करेंगी।

यह पूछनेपर कि क्या उदारवादियों और निर्दलियोंको कांग्रेसमें लानेको कोई कोशिश नहीं की जायेगी, गांधीजीने कहा :