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२४१. रामनाम और खादी

एक 'जूना जोगी' इस प्रकार लिखते हैं :[१]

यह पत्र दो महीनेसे मेरे पास ही पड़ा हुआ है। मैंने सोचा था कि कुछ फुर्सत मिलनेपर मैं उसे 'नवजीवन' के पाठकोंके सामने पेश करूँगा। आज फुर्सत मिली है अथवा यों कहिए कि मैंने ही इसके लिए कुछ फुर्सतका समय निकाला है। मुझे पत्र-लेखकने दोष न देखने की सलाह दी है। आज यदि मैं उनके पत्रकी टीका कर रहा हूँ तो इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं उसके दोषोंको ही देख रहा हूँ, लेकिन उसका हेतु तो इस पत्रको 'नवजीवन' में कहीं-न-कहीं स्थान देकर रामनामकी महिमा प्रकट करना है। पत्र-लेखक महाशय और दूसरे लोग भी इस बातका यकीन रखें कि जो ग्रहण करने योग्य है, उसे में अवश्य ही ग्रहण करता है। मुझे यह प्रतीत होता है कि रामनामकी महिमाके सन्दर्भ में मुझे अब कुछ नया सीखना बाकी नहीं है। क्योंकि मुझे उसका अनुभव है और इसीलिए मेरा अभिप्राय यह है कि खादी और स्वराज्यके प्रचारकी तरह रामनामका प्रचार नहीं हो सकता। इस कठिन कालमें रामनामका उलटा जाप होता है। अर्थात् मैंने बहुतसे स्थानोंमें केवल आडम्बरके लिए, कुछ स्थानोंमें अपने स्वार्थके लिए और कुछ जगहोंमें व्यभिचार करने के लिए इसका जाप होते हुए देखा है। यदि जाप केवल अक्षरोंको हदतक उलटा हो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। यह हमने पढ़ा है कि शुद्ध हृदय लोगोंने उलटा जाप जपकर भी मुक्ति प्राप्त की है और इसे हम मान भी सकते हैं। लेकिन शुद्धोच्चारण करनेवाले पापी, पापकी पुष्टिके लिए रामनामके मन्त्रका जप करें तो हम उसे क्या पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। कहेंगे? इसीलिए मैं रामनामके प्रचारसे डरता हूँ। जो लोग यह मानते हैं कि भजन मण्डली में बैठकर रामनामकी रट लगानेसे और शोर करनेसे भूत, भविष्य और वर्त्तमानके सब पाप नष्ट हो जायेंगे और कुछ भी करना बाकी न रहेगा, उन्हें तो दूर ही से नमस्कार कर लेना चाहिए। उनका अनुकरण नहीं किया जा सकता। रामनाम जपनेकी योग्यता प्राप्त करनेके लिए मैं तो प्रथम खादी प्रचार इत्यादिकी योग्यताकी ही अपेक्षा रखूँगा। रामनामके जापसे ही खादीके प्रचारके लिए वायुमण्डल तैयार होगा। आज वह मुझे कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा है।

यह बात कि विद्वानोंको संसारमें कोई भी नहीं समझा सका है, यह वे किस प्रकार लिख सकते है जो रामके दास है? मुझे तो मालूम नहीं होता कि मुझे कोई मोह है। विद्वान् भी तो रामको दुनियामें ही रहते है और बहुतेरे विद्वान् रामका नाम लेकर तर भी गये हैं। सच बात तो यह है कि विद्वानोंको बिना भक्तके और कोई नहीं समझा सकता। और भक्त होनेकी अभिलाषा रखनेवाला में विद्वानोंको समझानेका प्रयत्न भी कर रहा हूँ। और मुझे मोह न होने के कारण जो लोग समझते नहीं है।

 
  1. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है।