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टिप्पणियाँ

तो उसे दबाना है, यानी उसका मूल उपयोग सेना विभागके लिए है। रेल-यात्रा जो तकलीफें होती है, उनका कारण यह बुनियादी दोष है। इसको मिटानेका उपाय केवल स्वराज्य है, और यह स्वराज्य नीतिराज्य होना चाहिए। इस तरह यात्रियोंके दुःखोंका स्मरण करनेपर उनके तीन पक्ष दिखते है। ये विचारणीय है और मेरी इच्छा है कि संचालक उसपर विचार करें।

कातनेवालोंसे

चरखा संघकी ओरसे निम्नलिखित पत्र मिला है।[१]

इसपर मुझे इतना ही कहना है कि चरखा संघमें शामिल होनेवाले लोग जैसे-जैसे इन सुझावोंको समझने का प्रयत्न करेंगे और उनके अनुसार कार्य करेंगे वैसे-वैसे संघकी शक्ति बढ़ेगी; इतना ही नहीं, संघका धन भी बढ़ेगा। खराब सूतकी एक कीमत और अच्छेकी दूसरी। मेहनत दोनोंमें कातनेवालोंको एक समान करनी पड़ती है और फिर सूतके गुण-दोषपर से कातनेवालेकी परीक्षा हो सकती है। सूत अच्छा हो तो बुनाईका खर्च कम होता है। सूत अच्छी तरहसे बांधा गया हो तो उसकी ज्यादा अच्छी रक्षा होती है। सुझावोंका पालन होनेसे व्यवस्थापकोंका समय बचेगा। इस तरह अल्प परिश्रमसे चरखा संघके धनमें अपने-आप इतनी वृद्धि हो सकती है जो सामान्य रूपसे समझमें नहीं आ सकती। उपर्युक्त पत्रके अन्तिम सुझावके सम्बन्धमें तो इतना ही कहा जा सकता है कि सदस्योंके लिए यदि 'उ' वर्ग न भी हो तो भी जो लोग सम्पूर्ण खादीमय न बन गये हों वे भी यदि कातें और सूत भेजें तब भी लाभ तो है ही। चरखा संघ नामके लिए नहीं, कामके लिए है। इसलिए सब उसे यथाशक्ति और यथामति जितनी मदद देंगे, उतना पुण्य ही है।

कुछ प्रश्नोंके उत्तर

अलग-अलग खादी-प्रेमियोंने कई प्रश्न पूछे हैं। उनके उत्तर ही यहाँ देता हूँ। उत्तरपर से प्रश्न समझा जा सकता है।

  1. सूतकी पहुँच सदस्योंको सीधे, अथवा पत्रकी मार्फत या ऐसे ही किसी अन्य तरीकेसे दी जायेगी।
  2. 'अ' वर्गके सदस्य सूत प्रतिमास भेज सकते हैं। बारह महीनोंका इकट्ठा भी भेज सकते हैं। जिन लोगोंका एक मासका सूत रह गया होगा वे उन दिनों सदस्य नहीं माने जायेंगे लेकिन जब वे अपना बकाया और भविष्यका सुत भी भेज देंगे तब वे फिरसे सदस्य माने जाने लगेंगे।
  3. मिलकी पूनी कातनेके लिए इस्तेमाल नहीं की जा सकती।
  4. संघका वर्ष अक्तूबरसे शुरू हुआ है। जिसने कांग्रेसको १४ हज़ार गज सूत दिया है वह एक वर्षतक तो कांग्रेसका सदस्य रहेगा। परन्तु चरखा संघमें अक्तूबर से नया सूत अवश्य मिलना चाहिए।
     
  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है।