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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


ऐसी खबर है कि ये बातें सर विलियम जॉनसन हिक्सने कहीं। लेकिन, हमें हमारी गुलामीकी याद दिलानेवाले ये कोई पहले ही मंत्री नहीं हैं। मगर सत्य किसीको कड़वा क्यों लगे? यह जान लेने में हमारी भलाई ही होगी कि हमारी स्थिति यह है कि जो भी हमपर तलवारके बलपर अधिकार कर ले, उसके लाभके लिए लकड़ियाँ काटना और पानी भरना ही हमारे लिये बदा है। सर विलियमने जो लंकाशायरके मालपर विशेष जोर दिया है, वह भी हमारे लिए अच्छा ही है। उससे तो यही साबित होता है कि जिस क्षण भारतमें मैचेस्टर के कपड़ेकी बिक्रीकी गुंजाइश नहीं रह जायेगी, उसी क्षण अंग्रेजोंकी तलवारें म्यानोंमें चली जायेंगी। और फिर सर विलियम की तलवारकी धार कुण्ठित करनेकी अपेक्षा मैचेस्टरके कपड़ोंका उपयोग छोड़ देना बहुत कम व्यय-साध्य, अधिक आसान, और शीघ्र कार्यवाहीके लिये उपयुक्त है। अगर हम सर विलियमकी तलवारकी धार कुण्ठित करना चाहें तो उससे तलवारोंकी, लड़नेवालों की संख्याकी और इस तरह दुनियाके दुःखकी भी वृद्धि होगी। जैसे अफीमकी पैदावारपर रोक लगानेकी जरूरत है, वैसे ही तलवार बनानेपर भी प्रतिबन्ध लगानेकी आवश्यकता है। बल्कि दुनियाके दुःखोंके लिए तलवार, कदाचित्, अफीमसे भी अधिक दोषी है। इसीलिए मैं कहता हूँ कि अगर भारत चरखेको अपना ले तो वह शस्त्रीकरणको रोकने और दुनियामें शान्ति स्थापित करने में जितना सहायक सिद्ध होगा उतना सहायक न अन्य कोई देश हो सकता है और न कोई और चीज।

सरकारी नौकर और अ॰ भा॰ च॰ संघ।

एक सरकारी नौकरने लिख भेजा है कि वे पिछले चार वर्षोंसे बराबर खादी ही पहनते रहे हैं और वह खादी भी खुद उन्हींके काते सुतसे तैयार की हई होती है। वे नियमित रूपसे कताई करते है, लेकिन सरकारी नौकर होनेके कारण अबतक वे ऐसे किसी संगठनमें शामिल नहीं हो पाये हैं। अब उन्होंने पूछा है कि अ॰ भा॰ च॰ संघ तो, जैसा कि उसके संविधानको प्रस्तावनासे प्रकट होता है, एक गैर-राजनीतिक संस्था है, इसलिए क्या वे इसके सदस्य बन सकते हैं। मेरा तो निश्चित मत है कि अगर इसके उद्देश्योंमें वाइसरायका विश्वास हो तो वे भी इसके सदस्य बन सकते है और ऐसा करनेपर उन्हें कोई कुछ नहीं कह सकता। इसलिए अगर सरकारी नौकरीके नियमोंमें कोई ऐसी बात न हो, जिसके अनुसार सरकारी नौकरोंके लिए किसी संघका—चाहे वह गैर-राजनीतिक ही क्यों न हो—सदस्य बनना निषिद्ध हो, तो जिस सरकारी नौकरको अ॰ भा॰ च॰ संघसे सहानुभूति हो उसे इसका सदस्य बनने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। वही पत्र-लेखक पूछते हैं कि क्या प्रतिदिन आधे घंटेतक कताई करना आवश्यक है, या अगर कोई चाहे तो अपने हिस्सेका सुत जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी कातकर निश्चित हो जा सकता है। संघके संविधानके अनुसार तो हर सदस्यको ऐसी छूट है कि वह चाहे तो अपने वर्ष-भरका चन्दा अर्थात् बारह हजार गज सूत, एक साथ भेज सकता है। रोज कातनेका कोई बन्धन नहीं है। लेकिन, उचित यही है कि अपने हिस्सेका सूत पूरा कर लेनेपर भी प्रतिदिन काता जाये।