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टिप्पणियाँ

बोझसे मुक्त हो जायेंगे जो किसी प्रकारको क्षति उठानेसे डरते है और फिर इस कारण अपनी कायरताको अहिंसाकी आड़में छिपाते हर जीवनके इस परम सत्यको विकृत करते हैं। 'सोऽहं' के सिद्धान्तके बारेमें भी ऐसा ही कहा जा सकता है। यह एक वैज्ञानिक सत्य है, किन्तु अस्पृश्योंके कारण अपने व्यवहारमें हम इस सत्यको अस्वीकार करते हैं। अन्तिम हिस्सेमें जो आरोप लगाये गये हैं, उन्हें प्रमाणोंसे साबित नहीं कियाजा सकता। इस सम्बन्धमें जैसी स्थिति हिन्दुओंकी है, बहुत अंशोंमें वैसी ही स्थिति दूसरे धर्मानुयायियोंकी भी है। समान परिस्थितियोंमें मानव-स्वभावकी प्रतिक्रियाएँ समान ही होती है। क्या मुसलमान दूसरे धर्मोंके प्रति कभी सहिष्णुता नहीं बरतता? अपने दौरोंमें मुझे ऐसे सैकड़ों मुसलमानोंसे मिलनेका मौका मिलता है जो उतने ही सहिष्णु हैं, जितने कि हिन्दू। मैंने सहिष्ण वृत्तिके ईसाईभी देखे है—और सो भी विरले नहीं अपितु अधिक संख्यामें। पत्र-लेखकको ध्यानसे देखनेपर पता चलेगा कि जो लोग दूसरे धर्मोंके प्रति असहिष्णु है, वे अपने धर्मवालोंके प्रति भी उतने ही असहिष्णु होते है।

एक ब्रह्मसमाजीकी कामना

एक ब्रह्मसमाजी भाईने लिखा है :

कुछ साल पहले राजा राममोहन रायको मामूली आदमी कहकर आपने ब्रह्मसमाजके प्रति अनजानेही बहुत बड़ा अपराध किया था, किन्तु अब यह देखकर मुझे बड़ी खुशी हो रही है कि डा॰ रवीन्द्रनाथ ठाकुरका लेख पढ़कर आपने उस चीजको महसूस किया है।[१] अब चूंकि आपने यह स्पष्ट कर दिया है कि आपने किन परिस्थितियोंमें उस शब्दावलीका प्रयोग किया था और ब्रह्मसमाजके महान् संस्थापकके प्रति आपके मन में कितने अधिक आदर-भाव हैं, मैं आशा करता हूँ कि बंगाल और अन्यत्र रहनेवाले मेरे ब्रह्मसमाजी भाई भी आपके स्पष्टीकरणको उसी उदारतासे स्वीकार कर लेंगे और आपके आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यमें सहयोग करेंगे। क्योंकि सही दृष्टिसे देखें तो ब्रह्मसमाजका भी उद्देश्य यही है। प्रार्थना और जीवनकी सादगीमें आपका विश्वास, शास्त्रोंका अर्थ करनेमें बुद्धिसे काम लेनेका आपका आग्रह, सत्य चाहे जहाँ और जिस चीजमें भी हो, उसके प्रति आपका प्रेम, ईसा, बुद्ध, और मुहम्मद जैसे महान् सन्तों और नबियोंके प्रति आपकी श्रद्धा, साम्प्रदायिक एकता, अस्पृश्यता निवारण और मद्य-निषेधके लिए किया गया आपका काम, इन सबने कई ब्रह्मसमाजियोंके मनमें आपके प्रति आदर और प्रशंसाके भाव भर दिये हैं। मुझे पूरी आशा और विश्वास है कि अब चूंकि आपने गलतफहमी दूर कर दी है, इसलिए ब्रह्मसमाज, मातृभूमिके आध्यात्मिक और सामाजिक पुनरुत्थानके
 
  1. देखिए "कवि-गुरु और चरखा", ५–११–१९२५।