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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
लिए आप जो प्रयत्न कर रहे हैं, उसका स्वागत करेगा। अब मेरी यही कामना है कि भगवत्कृपासे वस्तु-स्थितिके इस सही बोधके सुन्दर परिणाम निकलें।

जो काम ये भाई करते हैं, वही मेरी भी कामना है। किन्तु, मैं यहाँ इतना बता दूँ कि मैंने उस महान् पुरुषको कभी भी निरपेक्ष अर्थोंमें साधारण व्यक्ति नहीं कहा। मैंने 'यंग इंडिया की पुरानी फाइलें देख ली हैं। १३–४–१९२१का अंक[१] देखनेसे वे परिस्थितियाँ स्पष्ट हो जाती है, जिनमें मैंने उन शब्दोंका प्रयोग किया था, और वह भाषण तो, जितना मुझे याद था, उससे भी अधिक सन्तुलित और सुन्दर है। इसके अलावा, मैंने तो कभी ऐसा भी नहीं पाया कि ब्रह्मसमाजी भाई मेरे कार्योंमें शरीक होनेसे कुछ खास तौरपर बचते रहे हों या यह कि कटकके भाषणमें उस महान सुधारकके विषय में कही गई मेरी बातोंके कारण वे इससे अलग रहे हों। जो भी हो, अगर कुछ लोग ऐसा करते रहे हों तो मुझे आशा है और प्रभुसे मेरी प्रार्थना है कि अब वे मेरे कार्योंके प्रति ठीक उत्साह दिखायेंगे। देखता हूँ, इन ब्रह्मसमाजी भाईने पत्र में एक बातको कोई चर्चा नहीं की, जो बहुत खटकती है। मेरी सबसे बड़ी प्रवृत्ति तो चरखा-सम्बन्धी प्रवृत्ति ही है। इसे मैं अपनी सबसे बड़ी सामाजिक, राजनीतिक एवं आध्यात्मिक सेवा मानता हूँ। कारण, इसमें ये तीनों तरहकी सेवाएँ समाविष्ट हैं। मैंने इस देशके करोड़ों क्षुधा-पीड़ित लोगों की खातिर सबसे चरखा चलानेका आग्रह किया है। भले ही उनसे मैंने प्रतिदिन आधे घंटे ही कातनेको कहा हो, लेकिन इस आग्रहके कारण यह आन्दोलन एक ही साथ राजनीतिक और आध्यात्मिक भी बन जाता है। इसलिए, अब पत्र-लेखक महोदय और अन्य ब्रह्म समाजी भाइयोंसे मेरा यही कहना है कि वे इस छोटेसे चक्र और उसके उत्पादन खादीकी ओर ध्यान दें।

वृक्ष-रक्षण

सभी धर्म, शायद मनुष्यकी आकांक्षाओं और आवश्यकताओंको ही उपज है। धर्ममें कुछ ऐसी शक्ति होती है, जो मनुष्यको सहज ही एक सूत्रमें पिरो देती है। गाय हमारे लिए एक अनिवार्य आवश्यकता थी; निदान हमने भारतमें गोरक्षा धर्मको अपनाया। जहाँ जलकी कमी हो, वहाँ कुआँ खोदना धर्म है, जहाँ जल अपरिमित मात्रामें मिलता हो वहाँ कुआँ खोदना हास्यास्पद ही होगा। इसी प्रकार त्रावणकोर जैसे स्थानोंमें जहाँ पेड़ लगाना निरर्थक होगा, वहाँ भारतके कुछ दूसरे हिस्सोंमें यह काम धर्म-रूप और आवश्यक है। कच्छ निःसन्देह ऐसी ही जगह है। इसकी जलवायु बड़ी अच्छी है, लेकिन इसके कुछ हिस्से ऐसे हैं कि यदि वहाँ ठीक वर्षा न हो तो उनके वीरान हो जानेका खतरा है। जंगलोंको काटकर या जंगल लगाकर वर्षाको लगभग वशमें किया जा सकता है। कच्छमें हर पेड़, हर झाड़ीकी रक्षा करनेकी जरूरत है। इसलिए कच्छमें मुझे जो-कुछ करना पड़ा, उसमें सबसे आनन्ददायक काम था पेड़ लगाना और एक वृक्ष-रोपण तथा वृक्ष-रक्षण संस्थाका उद्घाटन करना। यह सब एक ही व्यक्तिको

 
  1. देखिए खण्ड १९, पृष्ठ ४८३–४।