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सम्पूर्ण गांधी वाड़्मय

छिपाना तो नहीं चाहिए। लेकिन, उसका जिक्र भी अधिक नहीं करना चाहिए। यों मैं जानता हूँ कि मैंने इसे कम करके ही पेश किया है।

माण्डवीके उद्यमी लोगोंसे मैं अनुरोध करूँगा कि वे सबसे आगे बढ़कर आदर्श स्वच्छताका मार्ग दिखायें। राज्य चाहे उनकी कोई मदद करे या न करे, वे किसी विशेषज्ञको बुलाकर अपनी स्वच्छताकी स्थितिमें सुधार करनेके लिए पैसा खर्च करें और अपने यहाँ पूर्ण स्वच्छता कायम करें। "साधुताके बाद स्वच्छता ही सबसे बड़ा गुण है।" जिस प्रकार मन अशुद्ध हो तो भगवत्कृपा प्राप्त नहीं हो सकती, उसी प्रकार यदि हमारा शरीर अस्वच्छ हो तो भी, ईश्वरकी कृपा नहीं पा सकते। और अस्वच्छ नगरमें रहनेवाले व्यक्तिका शरीर स्वच्छ कैसे हो सकता है।

हर चीजको स्वराज्य प्राप्त करनेतक टालते रहना गलत बात है। इस तरह तो हम कभी स्वराज्य भी प्राप्त नहीं कर पायेंगे। स्वराज्य तो बहादुर और शुद्धस्वच्छ लोग ही प्राप्त कर सकते हैं। यह सच है कि बहुत-सी बातोंमें हमारी दुरावस्थाके लिए सरकार ही जवाबदेह है, लेकिन मैं जानता हूँ, हमारी अस्वच्छताके लिए ब्रिटिश अधिकारी जिम्मेदार नहीं है। सच तो यह है कि अगर हम इस मामलेमें उन्हें पूरी छूट दे दें तो वे तलवारके जोरपर हमारी आदतें सुधार दें। बे ऐसा इसलिए नहीं करते कि इससे उनको कोई लाभ होनेवाला नहीं है। लेकिन, स्वच्छताकी स्थितिके सुधारको दिशामें वे किसी भी प्रयत्नका सहर्ष स्वागत करेंगे और उसको बढ़ावा देंगे। इस मामलेमें हम यूरोपसे बहुत-कुछ सीख सकते हैं। इस सम्बन्धमें हम मनुके जो कुछेक श्लोकोंको या अगर मुसलमान हुए तो, कुरान की आयतोंको बड़े गर्वके साथ उद्धृत करते हैं, लेकिन आचरण हम उनपर भी नहीं करते। तो हम उनसे ये बातें सीखें और अपनी आवश्यकताओं और आदतोंके अनुसार उनमें परिवर्तन करके उन्हें अपनायें। केवल शोभाके लिए नहीं बल्कि काम करनेके लिए अगर ऐसे सफाईमण्डल स्थापित किये जायें, जिनके सदस्य झाडू, फावड़ा और बाल्टी लेकर काम करने में गौरव मानें तो उन्हें देखकर मुझे कितनी खुशी होगी।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १९–११–१९२५