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२४७. सच्चा कांग्रेसी
(१)

आप नहीं जानते कि हम (कांग्रेसी लोग) क्या है। मैं बताऊँगा कि हम क्या हैं। एक बार कांग्रेसके एक बड़े मशहूर सदस्य किसीके घर जा पहुँचे। अनिमन्त्रित। मकान मालिकको उन्होंने कोई खबर भी नहीं दी थी। मकान जरूर सुन्दर और सुविधापूर्ण था। मकानके मालिकने उनसे पूछा, 'आप ठहरेंगे कहाँ?' उन्होंने उत्तर दिया : 'यहीं, और कहाँ?' मकान-मालिक इस अनुग्रहके लिए तैयार न था; फिर भी उसे उनके लिए यथासम्भव रहन-सहनेका अच्छा प्रबन्ध करना ही पड़ा। मगर 'मान न मान, मैं तेरा मेहमान' बनकर आये इन सज्जनको क्षुद्रताकी ओरसे बीच-बीचमें इशारा करनेसे वह नहीं चूका। यहाँ तक कि उसने एकाध अवसरपर उनकी ओर अपनी अवज्ञा भी दिखाई, लेकिन ये सज्जन तो ऐसी अवज्ञा और अपमानोंपर ध्यान देनेकी स्थितिसे ऊपर उठ चुके थे। आपको यह भी बता दूँ कि अनिच्छुक मेजबान कांग्रेसी नहीं था।

(२)

एक दूसरे कांग्रेसीने बिना किसी भी प्रकारकी इत्तिला दिये कांग्रेसके एक कार्यकर्त्ताके घरपर जाकर अड्डा जमा दिया। उनके साथ और बहुतसे लोग थे। जिस प्रकारको सुख-सुविधाको उन्होंने आशा की थी, वैसी न मिलनेपर वे उस कार्यकर्त्तापर बहुत बिगड़ उठें। हम कांग्रेसी अपने को इतना बड़ा मानने लगे हैं कि हम समझते हैं, हमें कुछ भी खर्च किये बिना अच्छोसे-अच्छी सेवा प्राप्त करनेका पूरा हक है।

ये किस्से मुझे कांग्रेसके एक सच्चे कार्यकर्त्ताने ऐसे व्यथित मनसे सुनाये कि मैंने सोचा, इनका उल्लेख करके इनसे जो शिक्षा मिलती है, उसे लोगोंके सामने प्रस्तुत कर दूँ। लेकिन कोई यह न माने कि ये किस्से अमुक व्यक्तिको लक्ष्य करके लिखे गये हैं। इन घटनाओंके नाम-धाम जान बूझकर छोड़ दिये गये हैं। दूसरे पक्षका क्या कहना है, सो मैं नहीं जानता। इसलिए किसीको भी इस बातका पता लगानेका निरर्थक प्रयत्न करने में अपना समय गँवानेकी जरूरत नहीं है कि ये लोग हैं कौन।

बात इतनी ही है कि इन दृष्टान्तोंका कभी अनुकरण न किया जाये। कांग्रेसियोंको सच्चे कांग्रेसी बनने के लिए दोषकी शंकासे भी परे होना चाहिए। उसे याद रखना चाहिए कि वह उचित और शान्तिपूर्ण तरीकोंसे स्वराज्य प्राप्त करने चला है। कोशिश करते-करते बहुत दिन बीत गये है, लेकिन वह अभी प्राप्त नहीं हो पाया है।