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भाषण : ईसाइयोंकी सभामें

बिना चल सके। यूरोपके, बल्कि भारतके भी, कुछ अच्छेसे-अच्छे लेखकोंका दृष्टिकोण यही है। लेकिन, इस दृष्टिकोणसे मेरा बुनियादी मतभेद है। मेरा कहना तो यह है कि जबतक मनुष्यको ऐसी शिक्षा नहीं दी जाती जिससे वह प्रति-प्रहार करनेसे अपनेको रोक सके तबतक वह अपनी सम्पूर्ण सम्भावनाओं, अपनी सम्पूर्ण गरिमाको चरितार्थ नहीं कर सकता। हम इसे पसन्द करें या न करें, हम बरबस उसी दिशामें जा रहे हैं। लेकिन अगर हम मजबूरन उस दृष्टिकोणको अपनानेके बजाय, उसे खुशीसे स्वीकार कर लें तो यह हमारे लिए श्रेयकी बात होगी। और आज मैं आप लोगोंसे यही सौभाग्य, इस विचारको स्वेच्छासे व्यावहारिक रूप देनेका सौभाग्य, प्राप्त करनेका निवेदन करने आया हूँ। सच तो यह है कि मुझे ईसाई श्रोताओंके सामने इस विषयपर बोलनेकी आवश्यकता नहीं होनी चाहिए थी, क्योंकि जब मैं प्रति-प्रहार न करनेकी बात कहता हूँ तो कुछ भाई ऐसा कहने लगते हैं कि आप तो ईसाई हैं। उन्हें क्या पता कि इस चीजके लिए मुझे हिन्दुओं और मुसलमानोंकी ही तरह ईसाइयोंको भी समझाना पड़ रहा है। मुझे तो ऐसे ज्यादा ईसाइयोंकी जानकारी नहीं है जिन्होंने इस चीजको अपने जीवनके एक स्थायी नियमके रूपमें स्वीकार कर लिया हो। मैं जिन अच्छेसे-अच्छे ईसाइयोंको जानता हूँ, उनमें से भी कुछ लोग यह स्वीकार नहीं करते कि ईसा मसीहकी यही शिक्षा है। लेकिन मैं तो मानता हूँ कि ईसा मसीहकी शिक्षा यही है। उनका कहना है कि यह सन्देश सारे संसारके लिए नहीं, सिर्फ उनके बारह शिष्योंके लिए था। अपनी बातके समर्थनमें वे 'न्यू टेस्टामेन्ट' के कुछ अंशोंको उद्धृत करते हैं। अहिंसाको अपना जीवन-सिद्धान्त बनानेके विचारके विराधियोंका कहना है कि इससे तो हम सिर्फ कायरोंकी जाति ही तैयार कर सकते हैं, और अगर भारत प्रति-प्रहारके त्यागका सन्देश अपनाता है तो उसका विनाश निश्चित है। इसके विपरीत आपके सामने मैं जो बुनियादी दृष्टिकोण रख रहा हूँ वह यह है कि अगर भारत इस दृष्टिकोणको नहीं अपनाता तो उसका और उसीके साथ संसारके समस्त राष्ट्रका विनाश निश्चित है। भारतको एक महाद्वीप ही समझिए, और जब यह शक्तिके सिद्धान्तको अपना लेगा—जैसा कि लगता है, आज यरोपने कर रखा है—तो यह भी संसारके कमजोर राष्ट्रोंका शोषक बन बैठेगा। फिर सोचिए कि दुनियाके लिए इसका क्या मतलब होगा।

—मैं अपनेको राष्ट्रवादी कहता हूँ और इसमें गर्वका अनुभव करता हूँ। मेरी राष्ट्रीयताकी सीमामें सारी सृष्टि समाहित है। इसमें मानवसे निम्नतर प्राणी भी शामिल हैं। इसमें संसारके सभी राष्ट्र शामिल है, और अगर मैं सारे भारतको इस सन्देशके सत्यकी प्रतीति करा सकू तो भारत सारी दुनियाके लिए वैसा ही कुछ बनकर सामने आयेगा जिसकी प्रतीक्षा दुनिया बड़ी आतुरतासे कर रही है। मेरी राष्ट्रीयतामें सारे संसारके कल्याणका विचार शामिल है। मैं नहीं चाहता कि भारत दूसरे राष्ट्रोंकी भस्म-राशिपर खड़ा होकर अपना उत्थान ढूंढ़े। मैं नहीं चाहता कि भारत एक भी मनुष्यका शोषण करे। मैं भारतके शक्तिशाली होनेकी कामना इसलिए करता हूँ कि वह दूसरे राष्ट्रोंको भी अपनी शक्तिसे अनुप्राणित कर सके। आज संसारका और