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एक जर्मनका अनुरोध

अधिकारमें लेने के लिए बड़ी आपाधापी चल रही है। यह रोग अब उभरकर ऊपर आ गया है, और निश्चित है कि समय पाकर यह रोग दूर होगा और कांग्रेस एक स्वस्थ तथा बलिष्ठ संस्था बन जायेगी। लेकिन जबतक कांग्रेस ईमानदारी और निःस्वार्थ-भावसे कठिन श्रम करनेवाले लोगोंकी संस्था नहीं बन जाती तबतक ऐसा नहीं होगा।

कांग्रेस चाहे जितनी लोकतान्त्रिक हो, उसमें कोई हर्ज नहीं। लेकिन लोकतन्त्रका मतलब दम्भ और अहंकार, लोगोंसे सेवा प्राप्त करनेका परवाना तो नहीं होना चाहिए। पंचोंकी वाणी परमेश्वरकी वाणी तभी हो सकती है, जब वह ईमानदारी, बहादुरी, नम्रता, विनय और आत्मत्यागकी वाणी हो। अगले वर्ष कांग्रेसका नेतृत्व एक महिलाके हाथोंमें होगा। अगर स्त्री आत्म-त्याग और पवित्रताकी साक्षात् प्रतिमूर्त्ति नहीं हुई तो वह कुछ नहीं है। तो अब हम सभी कांग्रेस-जन—चाहे स्त्री हो या पुरुष—अपने-आपको नम्र बनायें, अपने हृदयको पवित्र बनायें और करोड़ों मूक लोगोंके सच्चे प्रतिनिधि बनें।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १९–११–१९२५
 

२४८. एक जर्मनका अनुरोध

बड़ो दादाको[१] जर्मनीसे एक पत्र मिला है। उसके कुछ अंश मैं नीचे दे रहा हूँ :

भ्रष्टाचार तो धरतीसे उठकर आकाश तकमें छा गया है। सभी बुरे लोग सुख-समृद्धिका जीवन व्यतीत कर रहे हैं और अच्छे लोगोंका जीवन एक सतत संघर्ष बना हुआ है। सबसे गरीब हम टाउन क्लर्क लोग हैं, क्योंकि हमारा वेतन बहुत कम है—प्रति मास सिर्फ ३५ डालर। इसलिए हमारा जीवन सदा अभावग्रस्त रहता है।
मनमें प्रायः यह प्रबल इच्छा उठती है कि भारत जाकर वहाँ श्री गांधीके चरणों में बैठूँ। मैं बिलकुल अकेला हूँ। मेरे न स्त्री है न बच्चे। बेचारी एक बीमार-सी भतीजी है। मेरे सिवा उसका कोई सहारा नहीं है। वही मेरा घर संभालती है। अगर वह न हो तो मैं पादरी बन जाऊँ। उसे तो मैं कष्टमें छोड़कर जा नहीं सकता। लेकिन, मैं विद्या-व्यसनी व्यक्ति हूँ। मैंने प्राचीन और आधुनिक विदेशी भाषाओंका अच्छा अध्ययन किया है। मैंने रहस्यवाद और बौद्ध धर्मका भी अध्ययन किया है। मुझे न इससे अच्छी कोई जगह मिल पा रही है, न अच्छा पैसा। जर्मनीमें आज ऐसी ही स्थिति है।
 
  1. द्विजेन्द्रनाथ ठाकुर।

२८–३१