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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मानकर अपना पैसा उसे सुन्दर बनानेमें लगायें। इस तरह पैसा खर्च करनेसे पैसे में वृद्धि होती है, यह बात भी उन्हें समझ लेनी चाहिए। शहरमें यदि एक अच्छी सड़क हो तो उसके आसपास बने मकानोंकी कीमत बढ़ जाये। उसी तरह यदि अहमदाबादमें रास्ते आदि चौड़े हो जायें और साफ रहें तो आसपासकी जमीनकी कीमत भी अवश्य बढ़ेगी और लोगोंके स्वास्थ्यमें वृद्धि होने से उनके बल और आयुमें वृद्धि होगी और इससे जो आर्थिक लाभ होगा सो अलग। परन्तु अभी आरम्भ तो जो रास्ते और सड़कें आदि हैं उन्हें साफ करने और रखनेसे ही किया जाना चाहिए। इसका परिणाम अन्ततः तंग रास्तोंको चौड़ा करना, शहरमें स्थान-स्थानपर छोटे बगीचे बनवाना और शहरके मन्दिरों तथा मस्जिदोंको जो आज आसपासके कुरूप मकानोंसे ढंकसे गये हैं, उन्हें दीखने लायक बना देना और इस तरह शहरको सुन्दर बनाना होगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २२–११–१९२५
 

२५१. कच्छके संस्मरण—२
वृक्ष-रक्षण और वृक्षारोपण

कच्छकी यात्रामें जिन प्रश्नोंपर विचार करना पड़ा उनमें वृक्षारोपण और वृक्षरक्षणका प्रश्न भी था। कच्छ कुछ हदतक सिन्धका एक हिस्सा माना जा सकता है। परन्तु सिन्धको तो सिन्धु नदी मिली है, इसलिए सिन्धका निर्वाह हो सकता है। यदि सिन्ध नदी न हो तो सिन्ध बर्बाद हो जाये। कच्छको तो ऐसी किसी नदीका सहारा नहीं है। इसीसे कच्छमें अंजार, मुन्द्रा आदि थोड़ेसे हिस्सोंको छोड़कर अन्य स्थानोंपर वृक्षादिका दर्शन मुश्किलसे ही होता है और जहाँ वृक्षादि नहीं होते वहाँ बरसात हमेशा कम होती है। कच्छकी स्थिति ऐसी ही है। बरसात इतनी कम और अनियमित होती है कि ऐसा शायद ही होता है कि वहाँ अकालकी स्थिति न हो। पानीकी तंगी तो हमेशा बनी रहती है। यदि कच्छमें नियमपूर्वक और लगनके साथ वृक्ष लगाये जायें तो कच्छमें बरसातका प्रभाव बढ़ाया जा सकता है और फलस्वरूप यह प्रदेश अधिक उपजाऊ हो सकता है। इस दृष्टिसे श्री जयकृष्ण इन्द्रजित इस दिशामें जबर्दस्त प्रयास कर रहे हैं। माण्डवीमें शहरसे थोड़ी दूर एक सुन्दर मैदानमें उन्होंने मेरे हाथसे वृक्षारोपण कराया। मुझे कच्छमें मेरे हाथों हुई यह क्रिया सबसे अधिक प्रिय लगी। उसी दिन वहाँ वृक्ष-रक्षण सभाकी भी शुरुआत हुई। मेरी इच्छा है कि जिस हेतुसे यह सभा स्थापित की गई है और जिस हेतुसे मुझसे यह वृक्षारोपण कराया गया है, वह हेतु सफल हो।

श्री जयकृष्ण इन्द्रजित गुजरातके भूषण है। गुजरातमें अपने विषयमें जो तल्लीन हो गये हों ऐसे व्यक्ति इने-गिने ही हैं। ऐसे प्रमुख व्यक्तियोंमें श्री जयकृष्ण इन्द्रजित