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कच्छके संस्मरण—२

भी है। बरडाके[१] हरएक वृक्षसे और पत्ते-पत्तेसे उनका परिचय है। वृक्षारोपणपर उन्हें इतना ज्यादा विश्वास है कि वे उसे प्रथम स्थान देते हैं और उससे अनेक सुन्दर परिणामोंकी आशा रखते हैं। इस विषयमें उनका उत्साह और विश्वास संक्रामक है। उनके इस उत्साह और विश्वासकी बू मुझे तो जाने कबसे लग गई है। यदि राजा और प्रजा दोनों चाहें तो जहाँ वृक्ष-शास्त्रका ज्ञान रखनेवाला ऐसा व्यक्ति रहता है वहाँ उनका सम्पूर्ण लाभ लेकर सुन्दर वाटिका बनवा सकते हैं।

जोहानिसबर्ग एक ऐसा ही प्रदेश था। वहाँ किसी समय घासके सिवा और कुछ नहीं होता था। मकान एक भी न था। ४० वर्षके अन्दर यही प्रदेश स्वर्णपुरी बन गया है। एक समय ऐसा था जब लोगोंको एक डोल पानीके लिए बारह आने देने पड़ते थे और अनेक बार तो सोडावाटरपर गुजारा करना पड़ता था। कभी-कभी तो हाथ-मुँह भी सोडावाटरसे धोने की नौबत आ जाती थी। वहाँ आज पानी है और वृक्ष हैं। शुरूसे ही सोतेकी खानोंके मालिकोंने अत्यन्त उत्साहसे दूर-दूरसे वृक्ष मँगवाकर लगाये और इस तरह इस प्रदेशको पहलेकी तुलनामें बहुत हरा-भरा बना दिया। इससे बरसातकी मात्रामें भी वृद्धि हो गई। दूसरे भी ऐसे उदाहरण हैं जहाँ जंगल काटनेसे बरसात कम हो गई है और वृक्ष लगानेसे बरसात बढ़ गई है।

कच्छके धनिक-वर्गको यदि इस धर्मकार्यमें दिलचस्पी हो तो बहुत सुधार हो सकता है। जैसे गोरक्षा, वैसे इस प्रदेशमें वृक्ष-रक्षा भी धार्मिक कार्य है। एक गायको पालनेवाला पुण्य-फलका भागी होता है, ऐसा हम मानते हैं। उसी तरह, कच्छ, काठियावाड़ जैसे प्रदेशमें वृक्ष लगानेवाला पुण्य-फलका भागी होगा। इंधनके लिए अथवा अन्य किसी कार्यके लिए एक भी वृक्ष नहीं काटा जाना चाहिए। ईंधनके लिए पासके वृक्षोंको काटकर उसका इंधन बनवानेसे बाहरसे लकड़ियाँ मँगवाना अधिक सस्ता पड़ेगा। हालांकि वृक्ष काटनेवालेको तत्काल तो लकड़ियाँ मुफ्त मिल जाती है, परन्तु कच्छको उससे जो नुकसान पहुँचता है उसकी क्षतिपूर्त्ति किसी तरह भी नहीं की जा सकती। जिससे लकड़ी मिल सकें, ऐसा वृक्ष दस वर्षसे पहले तैयार नहीं होता। जिसमें दस वर्षकी मेहनत लगी हो और जो अनेक प्रकारसे धरती तथा मनुष्यकी रक्षा करता हो, ऐसे वृक्षको काटने की बात सोचना ही अनुचित है।

जो स्थिति कच्छकी है वही स्थिति लगभग काठियावाड़की है। काठियावाड़में तो वृक्षोंकी रक्षाका प्रश्न दिन-ब-दिन अधिकाधिक महत्त्वपूर्ण होता जाता है। लेकिन काठियावाड़में स्थिति कच्छकी अपेक्षा ज्यादा कठिन है, क्योंकि काठियावाड़ यद्यपि एक छोटा और सुन्दर प्रायद्वीप है तथापि इसके इतने ज्यादा हिस्से हो गये हैं तथा वे एक दूसरेसे इतने ज्यादा स्वतन्त्र है कि जबतक उनके बीच ऐसे प्रश्नोंके सम्बन्धमें मेल न हो तबतक वृक्षारोपण अथवा वृक्ष-रक्षणका कार्य सुव्यवस्थित रूपसे नहीं हो सकता। वैसा होनेपर भी यदि कच्छ और काठियावाड़को वीरान होनेसे बचाना हो तो समय रहते इसके सम्बन्धमें प्रभावकारी उपाय किये जाने चाहिए।

 
  1. अचरज प्रदेशका एक पहाड़ी जंगल।