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परिशिष्ट

कुछ निश्चित समयतक और वह भी थोड़े समयतक सरकारकी मददके बिना काम चला सकता है, लेकिन कोई व्यक्ति एक लम्बे अरसेतक काम नहीं चला सकता है। देशमें हर जगह, खासकर मेरे जिलेमें, खद्दरका प्रयोग सरकार विरोधी भावनाका प्रतीक है। यह विद्रोहियोंकी पोशाक मानी जाती है। इसे विद्रोहियोंकी पोशाक माननेके सम्बन्धमें कोई कानून भले ही न हो लेकिन व्यवहारमें ऐसा ही है। आपको मालूम ही होगा कि इस देशमें कानून एक बात है और उसको अमल में लाना दूसरी बात। हर कोई सरकारको रुष्ट करनेसे डरता है। तो फिर इन सब कारणोंके रहते हुए खद्दरका प्रयोग आम कैसे हो सकता है? केवल बहादुर और सिपाही-जैसे लोग ही खट्टर अपनायेंगे, आम जनता नहीं। इस प्रकार स्वराज्यसे पहले खद्दरका प्रयोग आम नहीं होगा। वस्तुतः खद्दरका प्रयोग आजकल एक अपराध है। इसपर आप शायद यह सवाल करेंगे कि जब लोग इतने कायर है कि खद्दर भी नहीं इस्तेमाल कर सकते, तो फिर वे संघर्ष करके सरकारका तख्ता कैसे उलट सकते हैं? महात्माजी, संसारमें कोई भी महान् घटना केवल दैवी शक्ति द्वारा घटित होती है और उसके कारणोंकी व्याख्या कर पाना मनुष्यके लिए असम्भव होता है। इतनी ताकतवर सरकारका तख्ता उलटनेका काम वस्तुतः दैवी शक्तियोंके द्वारा ही सम्पन्न होगा और बाहरी तौरपर एक महान् राष्ट्रव्यापी जोश द्वारा-ऐसा जोश जिसमें सभी लोग या कमसे-कम अधिकांश भारतीय लोग कुछ समयके लिए पागल रहेंगे। और इस तरहके महान् जोशके दौरान हर व्यक्ति इस उद्देश्य (सरकारको पलटने) के लिए कुछ समयतक बहत उतावला, निर्भय और बहादुर हो सकेगा।

स्वराज्यके बाद खद्दरका प्रयोग आम हो जायेगा क्योंकि तब उसके इस्तेमाल करने में डरको कोई गुंजाइश नहीं होगी। इसके अलावा लोगोंको खद्दर इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा और वे सरकार बनानेवाले राष्ट्रवादियोंका अनुग्रह भी प्राप्त करना चाहेंगे। इसी तरहकी प्रवृत्ति हम आजकल राष्ट्रवादियोंके अधीन जिला परिषदों और नगरपालिकाओंमें पाते है। इस सबके अलावा विदेशी वस्त्रोंके प्रयोगको अपराध घोषित करने वाला कानून भी बनेगा, जैसा कि हर राष्ट्रने किया है और अब गृह-उद्योगोंको बढ़ावा देनेके लिए कर रहा है।

(२) स्वराज्यसे पहले कोई स्थायी हिन्दू-मुस्लिम एकता कायम नहीं हो सकती। उसके कारण निम्नलिखित हैं :

बचपनमें मुझे मेरे एक चाचाने एक कहानी सुनाई थी जो इस तरह है—"एक समयमें दो नौजवान थे जो बड़े जिगरी दोस्त थे। ऐसा लगता था कि मानो वे दो शरीर एक प्राण हों। उनके माता-पिता यह पसन्द नहीं करते थे और इनकी मैत्रीको तोड़ने की ताकमें रहते थे। शायद उन्होंने डुग्गी पिटवाकर उस व्यक्तिको काफी इनाम देनेकी भी घोषणा करवाई जो उन मित्रोंकी मैत्री तुड़वा सके। एक बुढ़ियाने जिसे लोग कुटनी कहते थे, यह काम हाथमें लिया। वह उन मित्रोंके पास गई और उनमें से एकको अलग बुलाया तथा दूसरे मित्रकी आँखोंके सामने ही अपना मुँह उसके