पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/५२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४९६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सत्याग्रहके लिए अपना जीवन अर्पित करनेकी अनुमति दे देते हैं और निस्सन्देह आप यह तो जानते ही हैं कि मानव-जीवनमें नाममात्रका भी हस्तक्षेप-यथा जेल-यात्रा—मुख्यतः उसी सिद्धान्तपर आधारित है जिसपर सबसे प्रबल हस्तक्षेप अर्थात् प्राण-हरण है, क्योंकि ऐसे प्रत्येक मामले में लोग बाहरी दबाबके कारण अपने धर्मसे च्युत होते हैं। जो व्यक्ति तर्क-सम्मत बुद्धिसे विचार करता है, जानता है कि वह एक ही सिद्धान्त है जो उसके लिये कुछ दिनोंकी कैदका या उसके मृत्युदण्डका कारण है और दोनोंमें अन्तर केवल हस्तक्षेपकी मात्रामें है, प्रकारमें नहीं। वह यह भी जानता है कि जो व्यक्ति दण्ड देनेका हिमायती है, उसे हत्या करने में भी संकोच नहीं होना चाहिए।

असहयोगमें आप न केवल एक आदर्श, वरन् भारतकी आजादीका निष्कंटक और छोटा रास्ता भी देखते है—ऐसा रास्ता जो सिर्फ वहीं सम्भव है जहाँ एक समूची जनताको ऐसी सरकारके विरुद्ध विद्रोह करना हो जिसके पास शस्त्रबल हो। लेकिन जब एक पूरा राज्य दूसरे राज्यसे अपने अधिकार पाना चाहता है, तब वहाँ असहयोगका सिद्धान्त असमर्थ होता है, इसके लिए कोई अन्य राज्य उक्त राज्यके साथ दूसरे राज्योंका एक मित्रंगट बना सकता है, जबकि कुछ अन्य राज्य निष्पक्ष बने रह सकते हैं। जबतक एक ऐसा सच्चा राष्ट्रसंघ नहीं बनता जिसमें हर राज्यका योग हो, तबतक असहयोग सच्ची ताकत नहीं बन सकता, क्योंकि कोई भी राज्य अन्य सभी राज्योंसे अलग नहीं रह सकता। इसीलिए हम राष्ट्र-संघके लिए प्रयत्नशील है। और इसी कारणसे हम एक मजबूत पुलिस शक्ति बनाये रखनेका प्रयत्न करते हैं, कि कहीं आन्तरिक विद्रोह और अव्यवस्था सारी विदेशनीतिको असम्भव न बना दे। इसीलिए हम समझते हैं कि अन्य सरकारें वही काम कर रही है जिसे करनेसे हमें उन्होंने मना किया—याने कि कहीं शत्रु हमला करें, इसके लिए अपनेको शस्त्रोंसे लेस कर रही हैं। फिलहाल वे ऐसा करनेको मजबूर हैं और यदि हम भी चाहते हों कि हम शत्रुओंसे सतत परेशान न किये जायें, तो हमें भी सचमुच वहीं करना चाहिए। हम आशा करते हैं कि आप हमारे इस दृष्टिकोणको समझेंगे। यदि आप हमारी बात समझें तो इस पत्रके जवाबमें आप वैसा कहें; हम आपके बहुत आभारी होंगे; क्योंकि यूरोपके नवयुवकोंके लिए इन प्रश्नोंके प्रति आपके सही रुखको समझना ज़रूरी है। लेकिन कृपया आप यह न समझें कि हम यह चाहते हैं कि आप अपने सिद्धान्तकी एक मुख्य चीज सत्याग्रहको शपथपूर्वक छोड़ दें।

लेकिन हम सत्याग्रहको पूर्ण अहिंसाके भीतर नहीं पाते; वैसा अहिंसक सत्याग्रह कभी कहीं भी नहीं किया गया है। न तो आपने ही किया और न स्वयं ईसामसीहने भी किया, जिन्होंने सूदखोरोंको मन्दिरसे बाहर खदेड़ दिया था। हमारे लिये सत्याग्रह भाईचारेकी भावनाकी और त्यागकी सहज निष्कपट प्रवृत्ति है और आप भारतीय जनताको साथ लिये इतने सुन्दर ढंगसे जिसका परिचय हमें करा रहे हैं तथा हम आशा करते हैं कि हम भी वैसी मानसिक स्थितिमें विकास करेंगे, क्योंकि यह तो माना ही जा चुका है कि एक तरीका बुरा हो सकता है, लेकिन एक समूचा वर्ग या समूचा जनसमूह कभी दुष्ट नहीं हो सकता है (इसके बारेमें आपने १३ जुलाई १९२१को