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टिप्पणियाँ

कर दी। अपना आशय स्पष्ट करने के लिए मुझे विशेष दलील देने की आवश्यकता नहीं पड़ रही थी। प्रश्नोत्तरका सिलसिला बहुत तेजीसे चल रहा था, फिर भी मैंने देखा कि उस समय मैं उसे जो चन्द मिनटोंका समय दे सका, उसमें उसकी ज्ञान-पिपासाको शान्त नहीं कर सका। इसलिए मैंने उससे कहा कि यदि वह चाहे तो फिर मिल सकता है। इस सुझावको उसने बड़ी कृतज्ञतासे स्वीकार किया। अगली बार वह अपने मित्र और सहकर्मी बसन्तकुमार मलिकके साथ आया। मैं हैरिसकी लगन, बद्धि और वैचारिक प्रमाणिकतासे काफी प्रभावित हआ। इस बार भी मेरे पास जितना समय था, उसमें वह अपनी जिज्ञासा शान्त नहीं कर पाया। मैंने उसे एक और मुलाकातका वचन दिया। में उसकी प्रतीक्षामें था, तभी मुझे यह दुःखद समाचार मिला कि हैरिस दुनियामें नहीं रहा। उसके साथी बसन्तकुमार मलिकने उसकी मृत्यु और उसके जीवनके सम्बन्धमें जो दर्दनाक विवरण भेजा है, उसका सार नीचे दे रहा हूँ[१]

मैं हेरिसके मित्रों और कुटुम्बीयोंके प्रति संवेदना प्रकट करता हूँ महान् विचार एक बार उत्पन्न होने के बाद कभी नष्ट नहीं होते और हेरिस अपने विचारों के माध्यम से जीवित रहेगा। हेरिस जैसे अज्ञात और विनम्र कर्मयोगी अपने पूर्ववर्ती साथीयों के साथ कामको जारी रखते ही हैं। उनको हमारा शतशः प्रणाम।

साम्राज्यके परिया

हम सम्राज्य व्यवस्था में अपने दर्जे के उचित स्थानको भूल न जायें, कदाचित इसीलिए हमें कभी इंग्लैंड कभी दक्षिण अफ्रीकासे या ऐसे ही किसी दूसरे मुकाम से इस बात की लगातार याद-दिहानी मिलती रहती है कि हम क्या है? भारत मन्त्री हमें "ब्रिटेनकी तलवारकी तेज धार" की याद दिलाते है। महामहिम सम्राट्की भारत स्थित सेना के प्रधान अपनी सोची-समझी राय देते हुए कहते हैं कि हम जिस बात को लक्ष्य बनाकर चल रहे है, वह "अप्रप्य" है। इधर दक्षिण अफ्रीकी संघके एक मंत्री श्री मलान हमें बताते हैं कि युरोपीयों और हिन्दुस्तानीयों में समानता हो ही

  1. यह विवरण यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इसमें श्री हैरिसके शानदार विद्यार्थी-जीवनका हाल देते हुए बताया गया था कि ऑक्सफोर्ट के बेलियल कालेजका यह छात्र, सिवा एक परीक्षाके, सदा प्रथम स्थान प्राप्त करता रहा। श्री मलिकने उनके भारत-आगमनका उद्देश्य बताते हुए लिखा था कि एक बार लोटस क्लबमें किसी विषयपर वादविवादका आयोजन किया गया था। श्री हैरिससे श्री मलिककी मुलाकात वहीं हुई थी। इसके बाद श्री हैरिस श्री मलिकके एक दार्शनिक शोधमें शामिल हो गये और उसी शोधके सिलसिले में भारत आये थे। शोध करनेवालोंका विचार था कि अपनी परम्पराओंसे आजके मनुष्यका सम्बन्ध टूट गया है। जिस प्रकार आजकी संस्थाओंकी उपयोगिता कवकी समाप्त हो चुकी है और अब उनमें शान्तिके लिए कोई नई व्यवस्था और जीवनके लिए कोई नया आदर्श प्रस्तुत करनेकी क्षमता नहीं रह गई है, उसी प्रकार हमारा जीवन भी विशृंखलित हो गया है। स्पष्ट है कि जबतक मानव-समाजमें कोई अधिक सुसम्बद्ध और सौम्य व्यवस्था नहीं आ जाती, तबतक सच्ची शान्ति और चैन नहीं है। अतएव, ये शोधकर्ता किसी ऐसी नई विचार-प्रणालीका प्रतिपादन करना चाहते थे जो सन्देहवादसे त्रस्त मानवताको त्राण दे सके और जीवनको पुनः शृंखला-बद्ध कर सके। किन्तु, यह शोध-कार्य पूरा होनेसे पहले ही श्री हैरिस मलेरियाके शिकार हो गये और उसीसे उनका देहान्त हो गया।