परिशिष्ट ५
चरखा-यज्ञ
लेखक : रवीन्द्रनाथ ठाकुर
आचार्य प्रफुल्लचन्द्र रायने छापेके अक्षरों में मुझे अपनी आलोचनाका लक्ष्य बनाया है क्योंकि मैं चरखा चलाने के मामले में उत्साह प्रदर्शित नहीं कर सका हूँ। लेकिन चूँकि मेरे प्रति निर्मम होना उनके लिए असम्भव है, अतएव उन्होंने मेरे लिये दण्डकी व्यवस्था करते हुए मेरी बदनामीमें भी आचार्य ब्रजेन्द्रनाथ सील जैसे प्रख्यात व्यक्तिको मेरे साथ रखा है। इससे आलोचनाकी पीड़ाका शमन हो गया है और मुझे इस ध्रुव मानवीय सत्यका भी एक नया प्रमाण मिला है कि हम कुछ व्यक्तियोंसे सहमत होते है तो कुछसे नहीं होते। इससे यही सिद्ध होता है कि परमात्माने मानव मनका सृजन करते हुए मकड़ी-मनोवृत्तिको अपने साँचेके रूपमें सामने नहीं रखा, जिसकी एक मात्र नियति एक-रसतासे अपना जाला बुनते जाना है और यह मानव-स्वभावपर अत्याचार है कि उसे जबरन् किसी एक ही सांचे में ढाला जाये और उसे आकाररूप तथा उद्देश्यमें कोई एक ही स्तरको वस्तु बना दिया जाये।
हमारे शास्त्रोंका कथन है कि दैवी शक्ति विविध रूपा है और इसी कारण सृष्टि-निर्माणमें विभिन्न तत्त्व कार्य करते हैं। मृत्युमें सभी तत्त्व एक ही में घुल जाते हैं क्योंकि केवल विशृंखलता ही एकरूप होती है। परमात्माने मनुष्यको वही बहु-विध शक्ति प्रदान की है, इसीलिए उसको निर्मित सभ्यताओंमें विविधताकी देवीसमृद्धि होती है। प्रभुका यही उद्देश्य होता है कि मनुष्य अपने लिए जिन समाजोंका निर्माण करे उनमें यह विविधता एकताकी मालामें मनकोंकी तरह गुंथी रहे। किन्तु हमारे सार्वजनिक जीवनके पीछे मनुष्यको जो तुच्छ व्यवस्था बुद्धि काम कर रही है वह अपने मनचीते परिणामोंकी प्राप्तिकी लालसासे प्रेरित होकर यह प्रयत्न करती है कि सभीको एकरूपताके लोंदेमें सान दिया जाये। इसीलिए दुनयवी कामकाजके क्षेत्रमें हम प्रायः बहुतसारे ऐसे समान-वर्दीधारी श्रमिकोंको देखते हैं, जो मानो यन्त्रके ढले हों, ऐसी कठपतलियोंको पाते हैं जिन्हें सूत्रधार एक ही डोरसे नचा रहा है। और दूसरी ओर जहाँ कहीं मानवात्मा ठिठुर नहीं चुकी है, हमें इस ठोक-पीटकर तैयार की हुई एकरूपताके विरुद्ध सतत विद्रोहकी भावना भी देखनेको मिलती है।
यदि किसी देशमें हमें इस प्रकारके विद्रोहके चिह्न नहीं मिलते, यदि हम किसी देशके लोगोंको दास-भावसे किसी स्वामीके शरीर दण्डसे आतंकित होते या किसी गुरुके आदेशोंकी अन्ध-स्वीकृति द्वारा आत्मतुष्ट होकर धूलि-धूसरित होते देखते हैं, तो वास्तवमें हमें समझना चाहिए कि ऐसे देशको ऐसी स्थितिके लिए शोक मनानेका समय आ गया है।