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अखिल भारतीय देशबन्धु स्मारक

अध्यापनका पेशा अपनाये और इसकी कोई परवाह न करे कि उससे भौतिक लाभ कितना होता है। तब फिर राष्ट्र शिक्षकोंके पेशेके महत्त्वको कम करके नहीं आँकेगा। इसके विपरीत, इन आत्म-त्यागी स्त्रियों और पुरुषोंके लिए उसके हृदयमें सबसे ऊँचा स्थान होगा। इस तरह हम इसी निष्कर्षपर पहुँचते हैं कि जैसे हमारा स्वराज्य बहुत अंशोंमें हमारे अपने प्रयासोंसे ही सम्भव है, उसी तरह शिक्षकोंका उत्थान भी मुख्यतः स्वयं उन्हींके प्रयत्नोंसे सम्भव है। उन्हें साहस और धीरजके साथ कठिनाइयोंके बीचसे राह बनाते हुए सफलताकी मंजिलतक पहुँचना है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ६–८–१९२५
 

१५. अखिल भारतीय देशबन्धु स्मारक[१]

मेरी ही तरह पाठकोंको भी यह जानकर प्रसन्नता होगी कि पण्डित मालवीयजीने अखिल भारतीय देशबन्धु स्मारकके लिए पिछले सप्ताह प्रकाशित अपीलपर हस्ताक्षर कर दिये हैं। अन्य बहुतसे लोगोंके बारेमें भी उम्मीद है कि वे इस अपीलका अनुमोदन करेंगे। उन सबसे भी निवेदन किया गया है। यह टिप्पणी लिखते समय तक उनके उत्तर नहीं आये है। स्मारकके उद्देश्यके सम्बन्धमें मतभेदकी गुंजाइश है। इसलिए अभीतक यह तय कर पाना एक नाजुक मसला बना हुआ है कि इसके लिए किससे निवेदन किया जाये और किससे नहीं। इसलिए जिन लोगोंको देशबन्धुकी स्मृति प्यारी है और अपीलमें वर्णित सीमातक चरखा तथा खद्दरकी शक्तिमें विश्वास है, इन पंक्तियोंके द्वारा मैं उन सबको, इस अपीलपर हस्ताक्षर करनेके लिए आमन्त्रित करता हूँ। अपीलकी नकल फिरसे नीचे दे रहा हूँ।[२]

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, परिशिष्टांक ६–८–१९२५
  1. इसे गांधीजी अपीलकी प्रस्तावनाके रूपमें लिखा था; देखिए खण्ड २७, पृष्ठ ४१५–१६।
  2. यह नहीं दि जा रही है।